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🔯 माता लक्ष्मी की कथा 🔯-----------------------------एक बूढ़ा ब्राह्मण था वह रोज पीपल को जल से सींचता था । पीपल में से रोज एक लड़की निकलती और कहती पिताजी मैं आपके साथ जाऊँगी। यह सुनते-सुनते बूढ़ा दिन ब दिन कमजोर होने लगा तो बुढ़िया ने पूछा की क्या बात है? बूढ़ा बोला कि पीपल से एक लड़की निकलती है और कहती है कि वह भी मेरे साथ चलेगी। बुढ़िया बोली कि कल ले आना उस लड़की को जहाँ छ: लड़कियाँ पहले से ही हमारे घर में है वहाँ सातवीं लड़की और सही।By वनिता कासनियां पंजाबअगले दिन बूढ़ा उस लड़की को घर ले आया। घर लाने के बाद बूढ़ा आटा माँगने गया तो उसे पहले दिनों की अपेक्षा आज ज्यादा आटा मिला था। जब बुढ़िया वह आटा छानने लगी तो लड़की ने कहा कि लाओ माँ, मैं छान देती हूँ। जब वह आटा छानने बैठी तो परात भर गई। उसके बाद माँ खाना बनाने जाने लगी तो लड़की बोली कि आज रसोई में मैं जाऊँगी तो बुढ़िया बोली कि ना, तेरे हाथ जल जाएँगे लेकिन लड़की नहीं मानी और वह रसोई में खाना बनाने गई तो उसने तरह-तरह के छत्तीसों व्यंजन बना डाले और आज सभी ने भरपेट खाना खाया। इससे पहले वह आधा पेट भूखा ही रहते थे।रात हुई तो बुढ़िया का भाई आया और कहने लगा कि दीदी मैं तो खाना खाऊँगा। बुढ़िया परेशान हो गई कि अब खाना कहाँ से लाएगी। लड़की ने पूछा की माँ क्या बात है? उसने कहा कि तेरा मामा आया है और रोटी खाएगा लेकिन रोटी तो सबने खा ली है अब उसके लिए कहाँ से लाऊँगी। लड़की बोली कि मैं बना दूँगी और वह रसोई में गई और मामा के लिए छत्तीसों व्यंजन बना दिए। मामा ने भरपेट खाया और कहा भी कि ऎसा खाना इससे पहले उसने कभी नहीं खाया है। बुढ़िया ने कहा कि भाई तेरी पावनी भाँजी है उसी ने बनाया है। शाम हुई तो लड़की बोली कि माँ चौका लगा के चौके का दीया जला देना, कोठे में मैं सोऊँगी। बुढ़िया बोली कि ना बेटी तू डर जाएगी लेकिन वह बोली कि ना मैं ना डरुँगी, मैं अंदर कोठे में ही सोऊँगी। वह कोठे में ही जाकर सो गई। आधी रात को लड़की उठी और चारों ओर आँख मारी तो धन ही धन हो गया। वह बाहर जाने लगी तो एक बूढ़ा ब्राह्मण सो रहा था। उसने देखा तो कहा कि बेटी तू कहाँ चली? लड़की बोली कि मैं तो दरिद्रता दूर करने आई थी। उसने बूढे के घर में भी आँख से देखा तो चारों ओर धन ही धन हो गया।सुबह सवेरे सब उठे तो लड़की को ना पाकर उसे ढूंढने लगे कि पावनी बेटी कहां चली गई। बूढ़ा ब्राह्मण बोला कि वह तो लक्ष्मी माता थी जो हमारी दरिद्रता दूर करने आई थी । और हमारी दरिद्रता दूर करके चली गई । हे लक्ष्मी माता ! जैसे आपने उनकी दरिद्रता दूर की वैसे ही सबकी करना। 🌺🌼🙏🙏🚩🚩 ।।।।।।।।।।।।। 🌺JAY Mata Di 🌺 ।।।।।।।।।।।।। 🌻🌻🌷🌻🌻🌷🌻🌻🌷🌻🌻🌷🌻🌻

🔯 माता लक्ष्मी की कथा 🔯 ----------------------------- एक बूढ़ा ब्राह्मण था वह रोज पीपल को जल से सींचता था । पीपल में से रोज एक लड़की निकलती और कहती पिताजी मैं आपके साथ जाऊँगी। यह सुनते-सुनते बूढ़ा दिन ब दिन कमजोर होने लगा तो बुढ़िया ने पूछा की क्या बात है? बूढ़ा बोला कि पीपल से एक लड़की निकलती है और कहती है कि वह भी मेरे साथ चलेगी। बुढ़िया बोली कि कल ले आना उस लड़की को जहाँ छ: लड़कियाँ पहले से ही हमारे घर में है वहाँ सातवीं लड़की और सही। By वनिता कासनियां पंजाब अगले दिन बूढ़ा उस लड़की को घर ले आया। घर लाने के बाद बूढ़ा आटा माँगने गया तो उसे पहले दिनों की अपेक्षा आज ज्यादा आटा मिला था। जब बुढ़िया वह आटा छानने लगी तो लड़की ने कहा कि लाओ माँ, मैं छान देती हूँ। जब वह आटा छानने बैठी तो परात भर गई। उसके बाद माँ खाना बनाने जाने लगी तो लड़की बोली कि आज रसोई में मैं जाऊँगी तो बुढ़िया बोली कि ना, तेरे हाथ जल जाएँगे लेकिन लड़की नहीं मानी और वह रसोई में खाना बनाने गई तो उसने तरह-तरह के छत्तीसों व्यंजन बना डाले और आज सभी ने भरपेट खाना खाया। इससे पहले वह आधा पेट भूखा ही रहते थे। रात हु...

द्रोणगिरी गांव द्रोणागिरि पर्वत उत्तराखंड इस गांव में हनुमानजी की पूजा नहीं होती By वनिता कासनियां पंजाब इस गांव का नाम है द्रोणागिरी । उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित है । हनुमानजी यहीं से संजीवनी बूटी लाये थे । या यूं कहें कि पूरा संजीवनी पर्वत ही उखाड़ लाये थे । रोचक बात यह है कि हनुमानजी से जुड़े इस गांव में हनुमानजी की पूजा नहीं होती । शायद देश में यह इकलौता गांव होगा जहां हनुमानजी की पूजा नहीं होती है । कारण बताता हूं - इस गांव के लोग सदियों या सहस्राब्दियों से पर्वत की देवता की पूजा करते आये हैं । पर्वत देवता यानी द्रोणागिरी पर्वत । माना जाता है कि द्रोणागिरी वही पर्वत है जहां से हनुमानजी संजीवनी बूटी लाये थे । गांव वालों का मानना है कि संजीवनी के साथ हनुमानजी जो पर्वत उखाड़ कर ले गए वह वास्तव में उनके पर्वत देवता की एक भुजा थी । गांव के लोगों ने इस काम के लिए कभी हनुमानजी को माफ नहीं किया और आज तक उनसे नाराज हैं । मजेदार बात तो यह भी है कि इस गांव में रामलीला खूब होती है किंतु उसमें से हनुमानजी का पूरा प्रसंग ही गायब कर दिया जाता है । न गांव में हनुमानजी का कोई झंडा ही लगता है, न तस्वीर और न पूजा ही की जाती है । है न दिलचस्प ? यही है विविधता और इस विविधता की स्वीकार्यता ही हिंदुत्व और हिंदुस्तान की आत्मा है, पहचान है । तस्वीरें उसी द्रोणागिरी गांव की हैं

द्रोणगिरी गांव  द्रोणागिरि पर्वत  उत्तराखंड  इस गांव में हनुमानजी की पूजा नहीं होती  By वनिता कासनियां पंजाब इस गांव का नाम है द्रोणागिरी । उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित है । हनुमानजी यहीं से संजीवनी बूटी लाये थे । या यूं कहें कि पूरा संजीवनी पर्वत ही उखाड़ लाये थे । रोचक बात यह है कि हनुमानजी से जुड़े इस गांव में हनुमानजी की पूजा नहीं होती । शायद देश में यह इकलौता गांव होगा जहां हनुमानजी की पूजा नहीं होती है । कारण बताता हूं -        इस गांव के लोग सदियों या सहस्राब्दियों से पर्वत की देवता की पूजा करते आये हैं । पर्वत देवता यानी द्रोणागिरी पर्वत । माना जाता है कि द्रोणागिरी वही पर्वत है जहां से हनुमानजी संजीवनी बूटी लाये थे । गांव वालों का मानना है कि संजीवनी के साथ हनुमानजी जो पर्वत उखाड़ कर ले गए वह वास्तव में उनके पर्वत देवता की एक भुजा थी । गांव के लोगों ने इस काम के लिए कभी हनुमानजी को माफ नहीं किया और आज तक उनसे नाराज हैं ।        मजेदार बात तो यह भी है कि इस गांव में रामलीला खूब होती है किंतु उसमें से हनुमानजी का पूरा ...

💞*पूरी उम्र ससुराल में गुजारी मैंने*💞💞*फिर भी मायके से कफ़न मंगाना*💞💞*मुझे अच्छा नहीं लगता*।😢💞💞*💐"मुझे अच्छा नही लगता"*💐💞 💞मैं रोज़ खाना पकाती हू,तुम्हे बहुत प्यार से खिलाती हूं,पर तुम्हारे जूठे बर्तन उठानामुझे अच्छा नही लगता।😢💞💞कई वर्षो से हम तुम साथ रहते है, लाज़िम है कि कुछ मतभेद तो होगे,पर तुम्हारा बच्चों के सामने चिल्लाना मुझे अच्छा नही लगता।😢💞💞हम दोनों को ही जब किसी फंक्शन मे जाना हो,तुम्हारा पहले कार मे बैठ कर यू हार्न बजानामुझे अच्छा नही लगता।😢💞💞जब मै शाम को काम से थक कर घर वापस आती हूँतुम्हारा गीला तौलिया बिस्तर से उठानामुझे अच्छा नही लगता।😢💞💞माना कि अब बच्चे हमारे कहने में नहीं है,पर उनके बिगड़ने का सारा इल्ज़ाम मुझ पर लगानामुझे अच्छा नही लगता।😢💞💞अभी पिछले वर्ष ही तो गई थी,यह कह कर तुम्हारा,मेरी राखी डाक से भिजवानामुझे अच्छा नही लगता।😢💞💞पूरा वर्ष तुम्हारे साथ ही तो रहती हूँ,पर तुम्हारा यह कहना कि,ज़रा मायके से जल्दी लौट आनामुझे अच्छा नही लगता।😢💞💞तुम्हारी माँ के साथ तोमैने इक उम्र गुजार दी,मेरी माँ से दो बातें करतेतुम्हारा हिचकिचानामुझे अच्छा नहीं लगता।😢💞💞यह घर तेरा भी है हमदम,यह घर मेरा भी है हमदम,पर घर के बाहर सिर्फतुम्हारा नाम लिखवानामुझे अच्छा नही लगता।😢💞💞मै चुप हूँ कि मेरा मन उदास है,पर मेरी खामोशी को तुम्हारा,यू नज़र अंदाज कर जानामुझे अच्छा नही लगता।😢💞💞पूरा जीवन तो मैने ससुराल में गुज़ारा है,फिर मायके से मेरा कफन मंगवानामुझे अच्छा नहीं लगता।😢💞 ❤️ *By वनिता कासनियां पंजाब* ❤️ 💞🙋🏻‍♂️सभी महिलाओं को समर्पित 🤷🏻‍♂️💞�💞MUST READ FOR ALL WOMEN👌👌💞

 💞*पूरी उम्र ससुराल में गुजारी मैंने*💞 💞*फिर भी मायके से कफ़न मंगाना*💞 💞*मुझे अच्छा नहीं लगता*।😢💞 💞*💐"मुझे अच्छा नही लगता"*💐💞   💞मैं रोज़ खाना पकाती हू, तुम्हे बहुत प्यार से खिलाती हूं, पर तुम्हारे जूठे बर्तन उठाना मुझे अच्छा नही लगता।😢💞 💞कई वर्षो से हम तुम साथ रहते है, लाज़िम है कि कुछ मतभेद तो होगे, पर तुम्हारा बच्चों के सामने चिल्लाना मुझे अच्छा नही लगता।😢💞 💞हम दोनों को ही जब किसी फंक्शन मे जाना हो, तुम्हारा पहले कार मे बैठ कर यू हार्न बजाना मुझे अच्छा नही लगता।😢💞 💞जब मै शाम को काम से थक कर घर वापस आती हूँ तुम्हारा गीला तौलिया बिस्तर से उठाना मुझे अच्छा नही लगता।😢💞 💞माना कि अब बच्चे हमारे कहने में नहीं है, पर उनके बिगड़ने का सारा इल्ज़ाम मुझ पर लगाना मुझे अच्छा नही लगता।😢💞 💞अभी पिछले वर्ष ही तो गई थी, यह कह कर तुम्हारा, मेरी राखी डाक से भिजवाना मुझे अच्छा नही लगता।😢💞 💞पूरा वर्ष तुम्हारे साथ ही तो रहती हूँ, पर तुम्हारा यह कहना कि, ज़रा मायके से जल्दी लौट आना मुझे अच्छा नही लगता।😢💞 💞तुम्हारी माँ के साथ तो मैने इक उम्र गुजार दी, मेरी माँ से दो...

जिनके ह्रदय में निरन्तर प्रेमरूपिणी भक्ति निवास करती है, वे शुद्धान्त:करण पुरूष स्वप्न में भी यमराज को नहीं देखते ।श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - देवर्षि श्रीनारदजी ( जिनका प्रभु से बड़ा निकट का सबंध है ) के वाक्य हैं कि जिनके ह्रदय निरंतर प्रेमरूपिणी भक्ति निवास करती है, वे शुद्धन्त:करण पुरूष को स्वप्न में भी यमराजजी के दर्शन नहीं होते । यहां तीन शब्दों का विशेष महत्व है ।( पहला शब्द ) निरंतर भक्ति - यह नहीं कि जरूरत के समय की, फिर भूल गये ।( दूसरा शब्द ) शुद्धन्त:करण - अशुद्ध अन्तकरण यानी किसी के लिए राग, किसी से द्वेष, किसी मद की लालसा में, किसी लोभ की पूर्ति हेतु की गर्इ भक्ति, जिस इच्छापूर्ति के लिए होती है, वह इच्छा तो पूरी करती है, पर ऐसी भक्ति क्योंकि स्वार्थ सिद्धि के लिए की गर्इ होती है, इसलिए विशेष फलदायी नहीं होती है । यहां पर निरंतर भक्ति, निस्स्वार्थ भक्ति की बात कही गर्इ है ।( तीसरा शब्द ) स्वप्न में भी ऐसी भक्ति करने वाले को नर्क के दर्शन नहीं होते ( यानी असल में नर्क जाने की बात तो छोड दे, स्वप्न में भी नर्क के दर्शन नहीं होगें ।)

जिनके ह्रदय में निरन्तर प्रेमरूपिणी भक्ति निवास करती है, वे शुद्धान्त:करण पुरूष स्वप्न में भी यमराज को नहीं देखते । श्लोक में व्यक्त भाव एवं श्लोक से प्रेरणा - देवर्षि श्रीनारदजी ( जिनका प्रभु से बड़ा निकट का सबंध है ) के वाक्य हैं कि जिनके ह्रदय निरंतर प्रेमरूपिणी भक्ति निवास करती है, वे शुद्धन्त:करण पुरूष को स्वप्न में भी यमराजजी के दर्शन नहीं होते । यहां तीन शब्दों का विशेष महत्व है । ( पहला शब्द ) निरंतर भक्ति - यह नहीं कि जरूरत के समय की, फिर भूल गये । ( दूसरा शब्द ) शुद्धन्त:करण - अशुद्ध अन्तकरण यानी किसी के लिए राग, किसी से द्वेष, किसी मद की लालसा में, किसी लोभ की पूर्ति हेतु की गर्इ भक्ति, जिस इच्छापूर्ति के लिए होती है, वह इच्छा तो पूरी करती है, पर ऐसी भक्ति क्योंकि स्वार्थ सिद्धि के लिए की गर्इ होती है, इसलिए विशेष फलदायी नहीं होती है । यहां पर निरंतर भक्ति, निस्स्वार्थ भक्ति की बात कही गर्इ है । ( तीसरा शब्द ) स्वप्न में भी ऐसी भक्ति करने वाले को नर्क के दर्शन नहीं होते ( यानी असल में नर्क जाने की बात तो छोड दे, स्वप्न में भी नर्क के दर्शन नहीं होगें ।)

जानकारीबेताल पचीसी पच्चीस कथाओं से युक्त एक ग्रन्थ है। इसके रचयिता बेतालभट्ट बताये जाते हैं जो न्याय के लिये प्रसिद्ध राजा विक्रम के नौ रत्नों में से एक थे। ये कथायें राजा विक्रम की न्याय-शक्ति का बोध कराती हैं। By वनिता कासनियां पंजाबबेताल प्रतिदिन एक कहानी सुनाता है और अन्त में राजा से ऐसा प्रश्न कर देता है कि राजा को उसका उत्तर देना ही पड़ता है। उसने शर्त लगा रखी है कि अगर राजा बोलेगा तो वह उससे रूठकर फिर से पेड़ पर जा लटकेगा। लेकिन यह जानते हुए भी सवाल सामने आने पर राजा से चुप नहीं रहा जाता।बैताल पचीसी की कहानियाँ भारत की सबसे लोकप्रिय कथाओं में से हैं। इनका स्रोत राजा सातवाहन के मन्त्री “गुणादय” द्वारा रचित “बड कहा” नामक ग्रन्थ को दिया जाता है जिसकी रचना ई. पूर्व ४९५ में हुई थी । कहा जाता है कि यह किसी पुरानी प्राकृत में लिखा गया था और इसमे ७ लाख छन्द थे। आज इसका कोई भी अंश कहीं भी प्राप्त नहीं है। कश्मीर के कवि सोमदेव ने इसको फिर से संस्कृत में लिखा और कथासरित्सागर नाम दिया। बड़कहा की अधिकतम कहानियों को कथा सरित्सागर में संकलित कर दिए जाने के कारण ये आज भी हमारे पास हैं। “वेताल पन्चविन्शति” यानी बेताल पच्चीसी “कथा सरित सागर” का ही भाग है। समय के साथ इन कथाओं की प्रसिद्धि अनेक देशों में पहुँची और इन कथाओं का बहुत सी भाषाओं में अनुवाद हुआ। बेताल के द्वारा सुनाई गई यो रोचक कहानियाँ सिर्फ़ दिल बहलाने के लिये नहीं हैं, इनमें अनेक गूढ अर्थ छिपे हैं। क्या सही है और क्या गलत, इसको यदि हम ठीक से समझ ले तो सभी प्रशासक राजा विक्रम कि तरह न्याय प्रिय बन सकेंगे, और छल व द्वेष छोडकर, कर्म और धर्म की राह पर चल सकेंगे। इस प्रकार ये कहानियाँ न्याय, राजनीति और विषण परिस्थितियों में सही निर्णय लेने की क्षमता का विकास करती हैं।

जानकारी बेताल पचीसी पच्चीस कथाओं से युक्त एक ग्रन्थ है। इसके रचयिता बेतालभट्ट बताये जाते हैं जो न्याय के लिये प्रसिद्ध राजा विक्रम के नौ रत्नों में से एक थे। ये कथायें राजा विक्रम की न्याय-शक्ति का बोध कराती हैं।  By  वनिता कासनियां पंजाब बेताल प्रतिदिन एक कहानी सुनाता है और अन्त में राजा से ऐसा प्रश्न कर देता है कि राजा को उसका उत्तर देना ही पड़ता है। उसने शर्त लगा रखी है कि अगर राजा बोलेगा तो वह उससे रूठकर फिर से पेड़ पर जा लटकेगा। लेकिन यह जानते हुए भी सवाल सामने आने पर राजा से चुप नहीं रहा जाता। बैताल पचीसी की कहानियाँ भारत की सबसे लोकप्रिय कथाओं में से हैं। इनका स्रोत राजा सातवाहन के मन्त्री “गुणादय” द्वारा रचित “बड कहा” नामक ग्रन्थ को दिया जाता है जिसकी रचना ई. पूर्व ४९५ में हुई थी । कहा जाता है कि यह किसी पुरानी प्राकृत में लिखा गया था और इसमे ७ लाख छन्द थे। आज इसका कोई भी अंश कहीं भी प्राप्त नहीं है। कश्मीर के कवि सोमदेव ने इसको फिर से संस्कृत में लिखा और कथासरित्सागर नाम दिया। बड़कहा की अधिकतम कहानियों को कथा सरित्सागर में संकलित कर दिए जाने के कारण ये आज ...

❤️कहानियां ❤️

♥️ कहानीया ♥ _*क्या हमने कभी प्रयोग किया है कि हम कितने पलों तक अपनी श्वास को रोक सकते हैं?*_ *सर्वश्रेष्ठ कौन?* "मैं सर्वश्रेष्ठ हूँ!" आँखों ने घोषणा की। "मेरे बिना तुम इस संसार में कुछ नहीं देख सकते।" "अरे, लेकिन यह सच नहीं है!" कान चिल्लाए। "मेरे बिना तुम कुछ नहीं सुन सकोगे। तुम किसी भी बात का उत्तर नहीं दे पाओगे और मूर्ख दिखोगे।" By वनिता कासनियां पंजाब हमारे शरीर की इंद्रियाँ बुरी तरह लड़ने लगीं कि उनमें से कौन-सी सबसे महत्त्वपूर्ण है। अंत में, उन सब ने बहस बंद करने का निर्णय लिया। उन्होंने अपने रचयिता से पूछा, "हम में से सर्वश्रेष्ठ कौन है?" रचयिता ने उत्तर दिया, "अगर कोई इंद्रिय शरीर को त्याग दे और शरीर फिर भी काम करता रहे, तब तो सब ठीक है। लेकिन अगर कोई इंद्रिय शरीर को त्यागे और शरीर ढह जाए, तो क्या वही सबसे महत्त्वपूर्ण नहीं होगी?" तो, प्रत्येक इंद्रिय ने एक-एक करके एक वर्ष के लिए मानव शरीर त्यागने का फ़ैसला किया। सबसे पहले जिह्वा गई। जब वह वापस आई, तो उसने उत्सुकता से दूसरों से पूछा, "मेरे बिना जीवन ...

क्या दान करने से पैसा बढ़ता ही है? By वनिता कासनियां पंजाब ,दान देने से कभी भी "कुछ" घटता नहीं है बल्कि बढ़ता ही है, अब आप मेरी बात पर क्यों विश्वास करेंगे इसलिए पहले मैं आपको एक नहीं दो कहानी/दृष्टांत सुनाऊंगी, जो दृष्टांत मैंने चित्र के रूप में यहां पर प्रस्तुत की है, उसे मैंने अपने मोबाइल कैमरे से खींच कर, यहां प्रस्तुत किया है अतः चित्र सोर्स है मेरा मोबाइल फोन और उसकी गैलरी है"हमारे पास अभी जो भी धन है, उसे हमने पिछले जन्म में किए गए परमाथ कार्यों के पुण्यस्वरूप पाया है, परंतु अब हम पुरुषार्थरूपी पुण्यकार्य नहीं कर रहे हैं, इसलिए पिछले पुण्य समाप्त होते ही हमें भीख माननी पड़ेगी"क्योंकि यह कहानी भीख से समाप्त हुई है अतः एक भिखारी की दूसरी कहानी आपके सामने प्रस्तुत कर रही हूंएक भिखारी ईश्वर से प्रार्थना करते हुए घर से निकला, कि है ईश्वर आज मेरी पूरी झोली भिक्षा से भर दे, तभी उसे सामने से आता हुआ राजा दिखाई पड़ा..ध्यान दें, जो बात में बताने जा रहा हूं वह ब्रह्मांड का रहस्य उस भिखारी को नहीं पता था और हम में से बहुत लोगों को भी यह रहस्य नहीं मालूम ईश्वर ने सृष्टि इसी तरह की बनाई है कि देने वाले को वह और पूरा कर देता है और लेने वाले से धीरे-धीरे सब कुछ लेने लगता है, अगर मेरी बातों पर कम विश्वास हो रहा है तो कृपया बाइबल में भी इस बात की पुष्टि करें ..सामने से जब भिखारी को राजा आते दिखाई पड़ा, भिखारी ने सोचा कि आज राजाजी से मिलने वाले दान-दक्षिणा से उसकी सारी दरिद्रता दूर हो जाएंगी और उसका जीवन संवर जाएगा। लेकिन यह क्या राजा ने भिखारी को कुछ देने के बदले उल्टे अपनी बहुमूल्य चादर उसके सामने फैला दी और उससे सेवा/दान करने की कहने लगा। (भिखारी की स्थिति हम लोग के जैसे हो गई,जैसे हम लोगों को जीवन में कुछ समझ में नहीं आता कि ऐसा क्यों हो रहा है ? और क्या किया जाए) भिखारी को समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करें। अब मजबूरी थी भिखारी क्या करता जैसे-तैसे करके उसने दो दाने जौ के निकाले और राजा की झोली-चादर में डाल दिए। उस दिन ईश्वर की कृपा से भिखारी को अन्य दिनों की अपेक्षा अधिक भीख मिली, लेकिन अपनी झोली में से दो दाने जौ के देने का मलाल उसे सारा दिन रहा।(कभी- कभी किसी को कुछ देने के बाद हम मनुष्यों को भी हमेशा मलाल रहता है) शाम को जब भिखारी ने अपनी झोली पलटी तो उसके आश्चर्य की सीमा न रही। जो के दो दाने सोने के हो गए थे। अब उसे समझ में आया कि यह सेवा/ दान की महिमा के कारण ही हुआ। वह पछताया कि - काश! उस समय उसने राजाजी को और अधिक जौ दिए होते लेकिन हाय रे किस्मत, हाय रे नियत, भिखारी दे नहीं सका, क्योंकि उसकी देने की आदत जो नहीं थी।पहले मेरी स्वयं की आदत इस भिखारी जैसी थी,मैं केवल लेना जानती थीं किसी को कुछ देती नहीं थीयहां तक कि ज्योतिष परामर्श भी मुफ्त में चाहती थी/ ज्योतिष शिक्षा भी मुफ्त में चाहता थी लेकिन ईश्वर की कृपा से मुझको इस प्रकार की कुछ सच्ची कहानियों के द्वारा बुद्धि आई और मैंने, जिस जगह जो शुल्क लगता है, देना शुरू किया यानी कि शुल्क देकर परामर्श किया (देने की आदत आई) शुल्क देकर ज्योतिष शास्त्र सीखा और अब मैं हमेशा दान पुण्य करती रहती हूं, हो सकता है उसके प्रभाव से आज मैं सुखी व संपन्न हूंक्योंकि मैं सीधी- सच्ची बात लिखती हूं, जो हो सकता है कुछ लोगों को बहुत अच्छी लगे और कुछ लोगों को इसके विपरीत इसलिए मैं क्षमा प्रार्थी हूं सच्ची बात कहने के लिएईश्वर के दरबार में हम लोग भी भिखारी हैंअगर हम लोग अपनी आदतों में सुधार करें, तो निश्चित ही कहानी वाले भिखारी की तरह से हमारी झोली भी सोने/ पुरस्कार से भर जाएगी, मगर ध्यान रखिए अगर दो दाना देंगे, तो दो ही दाना प्राप्त होगाकण-कण देना, क्षण- क्षण देना, यह जीवन का अर्थ है।जो जैसे मन से देता है, वह उतना अधिक सामर्थ है ।।आप जो भी दोंगे, वही आपके पास लौटकर आएगा, स्वयं का अनुभव भी यही कहता है कि आप अगर बांटना सीख गए और जो भी शेयर किया उससे आप कभी खाली नही हो सकते।बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम: की किताबों और भी बहुत सी जगह हमने पढ़ा भी है कि देने से कोई चीज कभी घटती नहींमूल स्रोत: इस उत्तर का मूल स्रोत मेरे जीवन का अनुभव एवं स्वयं की विचार एवं मेरे द्वारा सीखी गई ज्योतिष विद्या है

क्या दान करने से पैसा बढ़ता ही है? By वनिता कासनियां पंजाब  , दान देने से कभी भी "कुछ" घटता नहीं है बल्कि बढ़ता ही है,  अब आप मेरी बात पर क्यों विश्वास करेंगे  इसलिए पहले मैं आपको  एक नहीं दो कहानी/दृष्टांत  सुनाऊंगी, जो दृष्टांत मैंने चित्र के रूप में यहां पर प्रस्तुत की है, उसे मैंने अपने मोबाइल कैमरे से खींच कर, यहां प्रस्तुत किया है  अतः  चित्र सोर्स  है मेरा मोबाइल फोन और उसकी गैलरी है "हमारे पास अभी जो भी धन है, उसे हमने पिछले जन्म में किए गए परमाथ कार्यों के पुण्यस्वरूप पाया है, परंतु अब हम पुरुषार्थरूपी पुण्यकार्य नहीं कर रहे हैं, इसलिए पिछले पुण्य समाप्त होते ही हमें भीख माननी पड़ेगी" क्योंकि यह कहानी भीख से समाप्त हुई है अतः एक भिखारी की दूसरी कहानी आपके सामने प्रस्तुत कर रही हूं एक भिखारी ईश्वर से प्रार्थना करते हुए घर से निकला, कि  है ईश्वर आज मेरी पूरी झोली भिक्षा से भर दे , तभी उसे सामने से आता हुआ राजा दिखाई पड़ा.. ध्यान दें, जो बात में बताने जा रहा हूं वह ब्रह्मांड का रहस्य उस भिखारी को नहीं पता था और हम में से बहुत...