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द्रोणगिरी गांव द्रोणागिरि पर्वत उत्तराखंड इस गांव में हनुमानजी की पूजा नहीं होती By वनिता कासनियां पंजाब इस गांव का नाम है द्रोणागिरी । उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित है । हनुमानजी यहीं से संजीवनी बूटी लाये थे । या यूं कहें कि पूरा संजीवनी पर्वत ही उखाड़ लाये थे । रोचक बात यह है कि हनुमानजी से जुड़े इस गांव में हनुमानजी की पूजा नहीं होती । शायद देश में यह इकलौता गांव होगा जहां हनुमानजी की पूजा नहीं होती है । कारण बताता हूं - इस गांव के लोग सदियों या सहस्राब्दियों से पर्वत की देवता की पूजा करते आये हैं । पर्वत देवता यानी द्रोणागिरी पर्वत । माना जाता है कि द्रोणागिरी वही पर्वत है जहां से हनुमानजी संजीवनी बूटी लाये थे । गांव वालों का मानना है कि संजीवनी के साथ हनुमानजी जो पर्वत उखाड़ कर ले गए वह वास्तव में उनके पर्वत देवता की एक भुजा थी । गांव के लोगों ने इस काम के लिए कभी हनुमानजी को माफ नहीं किया और आज तक उनसे नाराज हैं । मजेदार बात तो यह भी है कि इस गांव में रामलीला खूब होती है किंतु उसमें से हनुमानजी का पूरा प्रसंग ही गायब कर दिया जाता है । न गांव में हनुमानजी का कोई झंडा ही लगता है, न तस्वीर और न पूजा ही की जाती है । है न दिलचस्प ? यही है विविधता और इस विविधता की स्वीकार्यता ही हिंदुत्व और हिंदुस्तान की आत्मा है, पहचान है । तस्वीरें उसी द्रोणागिरी गांव की हैं

द्रोणगिरी गांव 
द्रोणागिरि पर्वत 
उत्तराखंड 
इस गांव में हनुमानजी की पूजा नहीं होती 


इस गांव का नाम है द्रोणागिरी । उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित है । हनुमानजी यहीं से संजीवनी बूटी लाये थे । या यूं कहें कि पूरा संजीवनी पर्वत ही उखाड़ लाये थे । रोचक बात यह है कि हनुमानजी से जुड़े इस गांव में हनुमानजी की पूजा नहीं होती । शायद देश में यह इकलौता गांव होगा जहां हनुमानजी की पूजा नहीं होती है । कारण बताता हूं - 
      इस गांव के लोग सदियों या सहस्राब्दियों से पर्वत की देवता की पूजा करते आये हैं । पर्वत देवता यानी द्रोणागिरी पर्वत । माना जाता है कि द्रोणागिरी वही पर्वत है जहां से हनुमानजी संजीवनी बूटी लाये थे । गांव वालों का मानना है कि संजीवनी के साथ हनुमानजी जो पर्वत उखाड़ कर ले गए वह वास्तव में उनके पर्वत देवता की एक भुजा थी । गांव के लोगों ने इस काम के लिए कभी हनुमानजी को माफ नहीं किया और आज तक उनसे नाराज हैं ।
       मजेदार बात तो यह भी है कि इस गांव में रामलीला खूब होती है किंतु उसमें से हनुमानजी का पूरा प्रसंग ही गायब कर दिया जाता है । न गांव में हनुमानजी का कोई झंडा ही लगता है, न तस्वीर और न पूजा ही की जाती है । है न दिलचस्प ? यही है विविधता और इस विविधता की स्वीकार्यता ही हिंदुत्व और हिंदुस्तान की आत्मा है, पहचान है । 

तस्वीरें उसी द्रोणागिरी गांव की हैं

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