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क्या दान करने से पैसा बढ़ता ही है? By वनिता कासनियां पंजाब ,दान देने से कभी भी "कुछ" घटता नहीं है बल्कि बढ़ता ही है, अब आप मेरी बात पर क्यों विश्वास करेंगे इसलिए पहले मैं आपको एक नहीं दो कहानी/दृष्टांत सुनाऊंगी, जो दृष्टांत मैंने चित्र के रूप में यहां पर प्रस्तुत की है, उसे मैंने अपने मोबाइल कैमरे से खींच कर, यहां प्रस्तुत किया है अतः चित्र सोर्स है मेरा मोबाइल फोन और उसकी गैलरी है"हमारे पास अभी जो भी धन है, उसे हमने पिछले जन्म में किए गए परमाथ कार्यों के पुण्यस्वरूप पाया है, परंतु अब हम पुरुषार्थरूपी पुण्यकार्य नहीं कर रहे हैं, इसलिए पिछले पुण्य समाप्त होते ही हमें भीख माननी पड़ेगी"क्योंकि यह कहानी भीख से समाप्त हुई है अतः एक भिखारी की दूसरी कहानी आपके सामने प्रस्तुत कर रही हूंएक भिखारी ईश्वर से प्रार्थना करते हुए घर से निकला, कि है ईश्वर आज मेरी पूरी झोली भिक्षा से भर दे, तभी उसे सामने से आता हुआ राजा दिखाई पड़ा..ध्यान दें, जो बात में बताने जा रहा हूं वह ब्रह्मांड का रहस्य उस भिखारी को नहीं पता था और हम में से बहुत लोगों को भी यह रहस्य नहीं मालूम ईश्वर ने सृष्टि इसी तरह की बनाई है कि देने वाले को वह और पूरा कर देता है और लेने वाले से धीरे-धीरे सब कुछ लेने लगता है, अगर मेरी बातों पर कम विश्वास हो रहा है तो कृपया बाइबल में भी इस बात की पुष्टि करें ..सामने से जब भिखारी को राजा आते दिखाई पड़ा, भिखारी ने सोचा कि आज राजाजी से मिलने वाले दान-दक्षिणा से उसकी सारी दरिद्रता दूर हो जाएंगी और उसका जीवन संवर जाएगा। लेकिन यह क्या राजा ने भिखारी को कुछ देने के बदले उल्टे अपनी बहुमूल्य चादर उसके सामने फैला दी और उससे सेवा/दान करने की कहने लगा। (भिखारी की स्थिति हम लोग के जैसे हो गई,जैसे हम लोगों को जीवन में कुछ समझ में नहीं आता कि ऐसा क्यों हो रहा है ? और क्या किया जाए) भिखारी को समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करें। अब मजबूरी थी भिखारी क्या करता जैसे-तैसे करके उसने दो दाने जौ के निकाले और राजा की झोली-चादर में डाल दिए। उस दिन ईश्वर की कृपा से भिखारी को अन्य दिनों की अपेक्षा अधिक भीख मिली, लेकिन अपनी झोली में से दो दाने जौ के देने का मलाल उसे सारा दिन रहा।(कभी- कभी किसी को कुछ देने के बाद हम मनुष्यों को भी हमेशा मलाल रहता है) शाम को जब भिखारी ने अपनी झोली पलटी तो उसके आश्चर्य की सीमा न रही। जो के दो दाने सोने के हो गए थे। अब उसे समझ में आया कि यह सेवा/ दान की महिमा के कारण ही हुआ। वह पछताया कि - काश! उस समय उसने राजाजी को और अधिक जौ दिए होते लेकिन हाय रे किस्मत, हाय रे नियत, भिखारी दे नहीं सका, क्योंकि उसकी देने की आदत जो नहीं थी।पहले मेरी स्वयं की आदत इस भिखारी जैसी थी,मैं केवल लेना जानती थीं किसी को कुछ देती नहीं थीयहां तक कि ज्योतिष परामर्श भी मुफ्त में चाहती थी/ ज्योतिष शिक्षा भी मुफ्त में चाहता थी लेकिन ईश्वर की कृपा से मुझको इस प्रकार की कुछ सच्ची कहानियों के द्वारा बुद्धि आई और मैंने, जिस जगह जो शुल्क लगता है, देना शुरू किया यानी कि शुल्क देकर परामर्श किया (देने की आदत आई) शुल्क देकर ज्योतिष शास्त्र सीखा और अब मैं हमेशा दान पुण्य करती रहती हूं, हो सकता है उसके प्रभाव से आज मैं सुखी व संपन्न हूंक्योंकि मैं सीधी- सच्ची बात लिखती हूं, जो हो सकता है कुछ लोगों को बहुत अच्छी लगे और कुछ लोगों को इसके विपरीत इसलिए मैं क्षमा प्रार्थी हूं सच्ची बात कहने के लिएईश्वर के दरबार में हम लोग भी भिखारी हैंअगर हम लोग अपनी आदतों में सुधार करें, तो निश्चित ही कहानी वाले भिखारी की तरह से हमारी झोली भी सोने/ पुरस्कार से भर जाएगी, मगर ध्यान रखिए अगर दो दाना देंगे, तो दो ही दाना प्राप्त होगाकण-कण देना, क्षण- क्षण देना, यह जीवन का अर्थ है।जो जैसे मन से देता है, वह उतना अधिक सामर्थ है ।।आप जो भी दोंगे, वही आपके पास लौटकर आएगा, स्वयं का अनुभव भी यही कहता है कि आप अगर बांटना सीख गए और जो भी शेयर किया उससे आप कभी खाली नही हो सकते।बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम: की किताबों और भी बहुत सी जगह हमने पढ़ा भी है कि देने से कोई चीज कभी घटती नहींमूल स्रोत: इस उत्तर का मूल स्रोत मेरे जीवन का अनुभव एवं स्वयं की विचार एवं मेरे द्वारा सीखी गई ज्योतिष विद्या है


दान देने से कभी भी "कुछ" घटता नहीं है बल्कि बढ़ता ही है, अब आप मेरी बात पर क्यों विश्वास करेंगे इसलिए पहले मैं आपको एक नहीं दो कहानी/दृष्टांत सुनाऊंगी, जो दृष्टांत मैंने चित्र के रूप में यहां पर प्रस्तुत की है, उसे मैंने अपने मोबाइल कैमरे से खींच कर, यहां प्रस्तुत किया है

 अतः चित्र सोर्स है मेरा मोबाइल फोन और उसकी गैलरी है

"हमारे पास अभी जो भी धन है, उसे हमने पिछले जन्म में किए गए परमाथ कार्यों के पुण्यस्वरूप पाया है, परंतु अब हम पुरुषार्थरूपी पुण्यकार्य नहीं कर रहे हैं, इसलिए पिछले पुण्य समाप्त होते ही हमें भीख माननी पड़ेगी"

क्योंकि यह कहानी भीख से समाप्त हुई है अतः एक भिखारी की दूसरी कहानी आपके सामने प्रस्तुत कर रही हूं

एक भिखारी ईश्वर से प्रार्थना करते हुए घर से निकला, कि है ईश्वर आज मेरी पूरी झोली भिक्षा से भर दे, तभी उसे सामने से आता हुआ राजा दिखाई पड़ा..

  1. ध्यान दें, जो बात में बताने जा रहा हूं वह ब्रह्मांड का रहस्य उस भिखारी को नहीं पता था और हम में से बहुत लोगों को भी यह रहस्य नहीं मालूम 
  2. ईश्वर ने सृष्टि इसी तरह की बनाई है कि देने वाले को वह और पूरा कर देता है और लेने वाले से धीरे-धीरे सब कुछ लेने लगता है, अगर मेरी बातों पर कम विश्वास हो रहा है तो कृपया बाइबल में भी इस बात की पुष्टि करें 

..सामने से जब भिखारी को राजा आते दिखाई पड़ा, भिखारी ने सोचा कि आज राजाजी से मिलने वाले दान-दक्षिणा से उसकी सारी दरिद्रता दूर हो जाएंगी और उसका जीवन संवर जाएगा। लेकिन यह क्या राजा ने भिखारी को कुछ देने के बदले उल्टे अपनी बहुमूल्य चादर उसके सामने फैला दी और उससे सेवा/दान करने की कहने लगा। (भिखारी की स्थिति हम लोग के जैसे हो गई,जैसे हम लोगों को जीवन में कुछ समझ में नहीं आता कि ऐसा क्यों हो रहा है ? और क्या किया जाए) भिखारी को समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करें। अब मजबूरी थी भिखारी क्या करता जैसे-तैसे करके उसने दो दाने जौ के निकाले और राजा की झोली-चादर में डाल दिए। उस दिन ईश्वर की कृपा से भिखारी को अन्य दिनों की अपेक्षा अधिक भीख मिली, लेकिन अपनी झोली में से दो दाने जौ के देने का मलाल उसे सारा दिन रहा।(कभी- कभी किसी को कुछ देने के बाद हम मनुष्यों को भी हमेशा मलाल रहता है) शाम को जब भिखारी ने अपनी झोली पलटी तो उसके आश्चर्य की सीमा न रही। जो के दो दाने सोने के हो गए थे। अब उसे समझ में आया कि यह सेवा/ दान की महिमा के कारण ही हुआ। वह पछताया कि - काश! उस समय उसने राजाजी को और अधिक जौ दिए होते लेकिन हाय रे किस्मत, हाय रे नियत, भिखारी दे नहीं सका, क्योंकि उसकी देने की आदत जो नहीं थी।

  • पहले मेरी स्वयं की आदत इस भिखारी जैसी थी,
    • मैं केवल लेना जानती थीं किसी को कुछ देती नहीं थी
      • यहां तक कि ज्योतिष परामर्श भी मुफ्त में चाहती थी/ ज्योतिष शिक्षा भी मुफ्त में चाहता थी लेकिन ईश्वर की कृपा से मुझको इस प्रकार की कुछ सच्ची कहानियों के द्वारा बुद्धि आई और मैंने, जिस जगह जो शुल्क लगता है, देना शुरू किया यानी कि शुल्क देकर परामर्श किया (देने की आदत आई) शुल्क देकर ज्योतिष शास्त्र सीखा और अब मैं हमेशा दान पुण्य करती रहती हूं, हो सकता है उसके प्रभाव से आज मैं सुखी व संपन्न हूं
  • क्योंकि मैं सीधी- सच्ची बात लिखती हूं, जो हो सकता है कुछ लोगों को बहुत अच्छी लगे और कुछ लोगों को इसके विपरीत इसलिए मैं क्षमा प्रार्थी हूं सच्ची बात कहने के लिए
  • ईश्वर के दरबार में हम लोग भी भिखारी हैं
    • अगर हम लोग अपनी आदतों में सुधार करें, तो निश्चित ही कहानी वाले भिखारी की तरह से हमारी झोली भी सोने/ पुरस्कार से भर जाएगी, मगर ध्यान रखिए अगर दो दाना देंगे, तो दो ही दाना प्राप्त होगा

कण-कण देना, क्षण- क्षण देना, यह जीवन का अर्थ है।

जो जैसे मन से देता है, वह उतना अधिक सामर्थ है ।।

आप जो भी दोंगे, वही आपके पास लौटकर आएगा, स्वयं का अनुभव भी यही कहता है कि आप अगर बांटना सीख गए और जो भी शेयर किया उससे आप कभी खाली नही हो सकते।

बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम: की किताबों और भी बहुत सी जगह हमने पढ़ा भी है कि देने से कोई चीज कभी घटती नहीं

मूल स्रोत: इस उत्तर का मूल स्रोत मेरे जीवन का अनुभव एवं स्वयं की विचार एवं मेरे द्वारा सीखी गई ज्योतिष विद्या है

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