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_*क्या हमने कभी प्रयोग किया है कि हम कितने पलों तक अपनी श्वास को रोक सकते हैं?*_

*सर्वश्रेष्ठ कौन?*

"मैं सर्वश्रेष्ठ हूँ!" आँखों ने घोषणा की। "मेरे बिना तुम इस संसार में कुछ नहीं देख सकते।"

"अरे, लेकिन यह सच नहीं है!" कान चिल्लाए। "मेरे बिना तुम कुछ नहीं सुन सकोगे। तुम किसी भी बात का उत्तर नहीं दे पाओगे और मूर्ख दिखोगे।"


हमारे शरीर की इंद्रियाँ बुरी तरह लड़ने लगीं कि उनमें से कौन-सी सबसे महत्त्वपूर्ण है।

अंत में, उन सब ने बहस बंद करने का निर्णय लिया। उन्होंने अपने रचयिता से पूछा, "हम में से सर्वश्रेष्ठ कौन है?"

रचयिता ने उत्तर दिया, "अगर कोई इंद्रिय शरीर को त्याग दे और शरीर फिर भी काम करता रहे, तब तो सब ठीक है। लेकिन अगर कोई इंद्रिय शरीर को त्यागे और शरीर ढह जाए, तो क्या वही सबसे महत्त्वपूर्ण नहीं होगी?"

तो, प्रत्येक इंद्रिय ने एक-एक करके एक वर्ष के लिए मानव शरीर त्यागने का फ़ैसला किया। सबसे पहले जिह्वा गई। जब वह वापस आई, तो उसने उत्सुकता से दूसरों से पूछा, "मेरे बिना जीवन कैसा रहा?"

दूसरे अंगों ने उत्तर दिया, "हम गूंगे इंसान की तरह जिए। हमने किसी से बात नहीं की। लेकिन प्राण से हम सांस लेते रहे, आँखों से हमने देखा, कानों से हमने सुना और मस्तिष्क से हमने सोचा। असुविधाजनक तो था, मगर हम जीवित रहे।"

अब, एक वर्ष के लिए आँखें शरीर से जुदा हो गईं। जब वे वापस आई, तो उन्होंने दूसरे अंगों से पूछा, "आप लोग मेरे बिना कैसे रहे?"

दूसरे अंगों ने उत्तर दिया, "हम एक नेत्रहीन की तरह जिए। हमने कुछ नहीं देखा। लेकिन हम प्राण से सांस लेते रहे, जिह्वा से बोले, कानों से हमने सुना और मस्तिष्क जसे हमने सोचा। हम अभी भी जीवित हैं, जैसा कि तुम देख सकती हो।"

फिर शरीर को त्यागने की कानों की बारी आई। जब एक साल बाद वे लौटकर आए, तो उन्होंने पूछा, "मेरे बिना जीवन बहुत बुरा रहा होगा ना?"

मगर दूसरे अंग हंस दिए और बोले, "हम एक बहरे व्यक्ति की तरह जिए। हमने कुछ नहीं सुना। लेकिन हम प्राण से सांस लेते रहे,जिह्वा से बोले, आँखों से हमने देखा और मस्तिष्क से सोचा। हमारा काम बहुत अच्छी तरह चला।"

 फिर मस्तिष्क एक वर्ष के लिए चला गया। जब वह लौटा तो उसने भी वही प्रश्न किया, "तो, आप लोगों ने मेरी कमी महसूस की?"

"हम ऐसे व्यक्ति की तरह जिए जिसका मस्तिक अभी बना न हो। हम कुछ सोच नहीं पाए। लोग समझते थे कि हम बहुत मूर्ख हैं। लेकिन हम प्राण से सांस लेते रहे, जिह्वा से बोले, आँखों से हमने देखा और कानों से सुना तो हम जीवित रह लिए।"

अंत में, प्राण की बारी थी। जीवन की श्वास ने भी एक वर्ष के लिए जाने का निर्णय लिया।

आपके विचार में क्या हुआ होगा? जब प्राण जाने के लिए तैयार हुए, तो सारे शरीर में बुरी तरह प्रतिक्रिया होने लगी, वह कांपा और लगभग गिर ही गया। सारे अंग एक साथ चिल्लाए, "रुको! हमें छोड़कर मत जाओ! तुम सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण हो! हम तुम्हारे बिना जीवित नहीं रह सकते। तुम्हारे बिना सारा शरीर मृत हो जाएगा।"

"हे प्राण," उन्होंने कहा, "हमारा जीवन केवल इसलिए है कि तुम शरीर में विद्यमान हो। हम जान गए हैं कि तुम ही जीवन हो। हम तो केवल जीवन की अभिव्यक्तियाँ हैं।"

इसीलिए प्राणायाम को बहुत महत्त्व दिया जाता है, जिसमें स्वास्थ्य के लिए सरल-सी श्वास-क्रियाएँ होती हैं। अच्छी श्वास लेने से अच्छा स्वास्थ्य बनाए रखने में मदद मिलती है।

मनुष्य के लिए श्वास अनिवार्य है क्योंकि यही जीवन बल है। अलग-अलग समय पर अपनी श्वास के पैटर्न पर ध्यान दें और समझने की कोशिश करें कि उसका क्या अर्थ है। क्या आप जानते हैं कि प्राणायाम जैसे श्वास के व्यायाम आपके फेफड़ों को बेहतर क्षमता प्रदान करते हैं? वे आपकी रोग-प्रतिरोधक क्षमता और ऊंचे पहाड़ों पर और वायु प्रदूषण वाले शहरों में भी बेहतर ढंग से जीने की क्षमता को बढ़ाते हैं। बेहतर और गहरी श्वास मस्तिष्क में ऑक्सीजन की सप्लाई की पूर्ति करती है और मस्तिष्क के क्रियाकलाप में भी सहायक होती है।

श्वास के व्यायामों का एक बिल्कुल भिन्न लाभ भी है जो शायद आप नहीं जानते हों। जब आप ख़ुद को गुस्से में या तनावग्रस्त महसूस करें, तो अपने अंगूठे से अपना दायाँ नथुना बंद करें और बाएँ नथुने से धीमी गहरी सांस लें। अपने पेट से गहरी सांस लें और हर बार पूरी सांस छोड़ें। बाएँ नथुने से इसे दस से बारह बार करें।

                          ♾️

*"हम प्राणों के द्वारा ही सांस लेते हैं, जिसके द्वारा हमारा रक्त-संचार होता है, जिसके द्वारा हमारी तंत्रिकाएँ व मांसपेशियाँ काम करती हैं और जिसके द्वारा हम सोचते हैं। ऊर्जा के सभी रूप प्राण की ही अभिव्यक्तियाँ हैं।"*
*वनिता कासनियां पंजाब*
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