सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

ध्यान करना किस समय उचित है? प्र श्न में ध्यान करने का समय जानने की जिज्ञासा है। संक्षेप में ही उत्तर दे रहा हूँ।, ★प्रकृति और मनुष्य में अटूट सम्बन्ध है।प्रकृति में दिन रात के चक्र में मुख्यतः जब संधिकाल होता है उस समय ध्यान करना श्रेष्ठ माना गया है।ये संधि काल मुख्यतः चार हैं ।संधि काल को संध्या भी कहा गया है जो शाम या evening से भिन्न अर्थ वाचक है★1. रात और दिन की संधि अर्थात प्रातः काल।अर्थात •प्रातःकालीन संध्या•।★2. दिन में सूर्य के चरम मध्य आकाश में पहुंचने का और का चरममध्य से नीचे आने की संधि का समय अर्थात मध्याह्न काल। अर्थात •मध्याह्न संध्या•।★3. दिनके अवसान काल और रात्रि के आरम्भ काल की संधि का समय अर्थात संध्या काल, अर्थात •संध्याकाल की संध्या• और★4.रात के चरम बिंदु पर पहुँचने के बाद रात के ढलने के आरम्भ होने का समय अर्थात मध्यरात्रि काल ।अर्थात •मध्यरात्रि की संध्या•।इसे •तुरीय संध्या•भी कहते हैं इस मध्य रात्रिकाल को निशीथ कहते हैं।पर गृहस्थ के लिए इस आधी रात वाली संध्या पर जोर नहीं है योगी व तांत्रिक इसे करते हैं। इसके अपने विशेष लाभ हैं जैसे कि *देव्यथर्वशीर्ष* में लिखा है: निशीथे तुरीय संध्यायां जप्त्वा वाक सिद्धर्भवति- अर्थात निशीथ काल की तुरीय संध्या में जप करने पर वाक सिद्धि मिलती है वाणी की सिद्धि मिलती है ।◆सनातनधर्म में संध्याओं पर बहुत जोर दिया गया है क्योंकि मनुष्य के शरीर की physiology शरीर क्रिया विज्ञान से सूर्य से नियंत्रित बाह्य प्रकृति के वातावरण का बहुत घनिष्ठ संबंध है ,सूर्य की स्थिति से बने ये संधिकाल इस के अति सम्वेदनशील बिन्दु हैं ।●गायत्री मंत्र जप करने वाले को तो त्रिकाल संध्या के साथ त्रिकाल गायत्री व त्रिकाल गायत्री के स्वरूप पर ध्यान करने का भी निर्देश है।देखिए त्रिकाल संध्या के ब्रह्मा विष्णु महेशस्वरूप जो सूर्य की सृजन पालन और विलय इन तीन शक्तियों के प्रतीक हैं:ब्राह्म मुहूर्त:इसके अतिरिक्त ध्यान का एक और सर्वश्रेष्ठ समय है:ब्राह्म मुहूर्त।यह ब्राह्म मुहूर्त विष्णु पुराण के "पंच पंच उषा काले" श्लोक के अनुसार उषा काल के पाँच घटी पहले का समय होता है।अर्थात यदि सूर्य उदय छह बजे सुबह का है तो सूर्य उदय से 5 घटी अर्थात दो घण्टे पहले से उषा काल होगा अर्थात यदि सुबह4 बजे से उषा काल है तो इस 4 बजे केउषा के पहले दो घण्टे का समय अर्थात दो बजे से ब्राह्म मुहूर्त होगा।यदि सूर्य उदय सात बजे है तो उषा काल5 बजे से और ब्राह्म मुहूर्त 3 बजे से होगा।ब्राह्म उषा अरुणोदय आदि की यह समय गणना सूर्य उदय के वास्तविक समय (जो साढ़े पांच से साढ़े छह-सात बजे तक ऋतु अनुसार हो सकता है ) और नगर के अक्षांश अनुसार बदलती रहेगी। इस ब्राह्म मुहूर्त पर विस्तृत पोस्ट पहले प्रेषित कर चुका हूँ।यहाँ यह विचारणीय है कि हम सनातन धर्मियों में से कितने एक बार भी उक्त तीन समय में से किसी एक समय का पालन करते हुए ध्यान कर पाते हैं ?◆चलते चलते:वैसे ध्यान जब भी जहाँ भी जिसको जैसा अपनी सुविधा से लग जाए वह सभी हमारी बौद्धिक शारीरिक ऊर्जा बढ़ाने में अतिरिक्त रूप से सहायक तो होता ही है।ध्यान एकाग्रता है। जैसे सूर्य की बिखरी किरणें एक आतशी शीशे लेंस में से गुजारने पर कागज या काष्ठ में आग लग सकती है ठीक वैसे ही ध्यान की ऊर्जा से उत्पन्न ऊर्जा की स्थिति होती है जो कई बौद्धिक शारिरिक आध्यात्मिक कार्यों में रोग उपचार इत्यादि में नए विचार सृजन में सहायक होती है।आभार:प्रथम चित्र मेरे मोबाइल से। वनिता कासनियां पंजाब चित्र ल्से।

ध्यान करना किस समय उचित है?
प्रश्न में ध्यान करने का समय जानने की जिज्ञासा है। संक्षेप में ही उत्तर दे रहा हूँ।

★प्रकृति और मनुष्य में अटूट सम्बन्ध है।

प्रकृति में दिन रात के चक्र में मुख्यतः जब संधिकाल होता है उस समय ध्यान करना श्रेष्ठ माना गया है।

ये संधि काल मुख्यतः चार हैं ।संधि काल को संध्या भी कहा गया है जो शाम या evening से भिन्न अर्थ वाचक है

★1. रात और दिन की संधि अर्थात प्रातः काल।अर्थात •प्रातःकालीन संध्या•।

★2. दिन में सूर्य के चरम मध्य आकाश में पहुंचने का और का चरममध्य से नीचे आने की संधि का समय अर्थात मध्याह्न काल। अर्थात •मध्याह्न संध्या•।

★3. दिनके अवसान काल और रात्रि के आरम्भ काल की संधि का समय अर्थात संध्या काल, अर्थात •संध्याकाल की संध्या• और

★4.रात के चरम बिंदु पर पहुँचने के बाद रात के ढलने के आरम्भ होने का समय अर्थात मध्यरात्रि काल ।अर्थात •मध्यरात्रि की संध्या•।इसे •तुरीय संध्या•भी कहते हैं इस मध्य रात्रिकाल को निशीथ कहते हैं।

पर गृहस्थ के लिए इस आधी रात वाली संध्या पर जोर नहीं है योगी व तांत्रिक इसे करते हैं। इसके अपने विशेष लाभ हैं जैसे कि *देव्यथर्वशीर्ष* में लिखा है: निशीथे तुरीय संध्यायां जप्त्वा वाक सिद्धर्भवति- अर्थात निशीथ काल की तुरीय संध्या में जप करने पर वाक सिद्धि मिलती है वाणी की सिद्धि मिलती है ।

◆सनातनधर्म में संध्याओं पर बहुत जोर दिया गया है क्योंकि मनुष्य के शरीर की physiology शरीर क्रिया विज्ञान से सूर्य से नियंत्रित बाह्य प्रकृति के वातावरण का बहुत घनिष्ठ संबंध है ,सूर्य की स्थिति से बने ये संधिकाल इस के अति सम्वेदनशील बिन्दु हैं ।

●गायत्री मंत्र जप करने वाले को तो त्रिकाल संध्या के साथ त्रिकाल गायत्री व त्रिकाल गायत्री के स्वरूप पर ध्यान करने का भी निर्देश है।देखिए त्रिकाल संध्या के ब्रह्मा विष्णु महेशस्वरूप जो सूर्य की सृजन पालन और विलय इन तीन शक्तियों के प्रतीक हैं:


ब्राह्म मुहूर्त:इसके अतिरिक्त ध्यान का एक और सर्वश्रेष्ठ समय है:ब्राह्म मुहूर्त।यह ब्राह्म मुहूर्त विष्णु पुराण के "पंच पंच उषा काले" श्लोक के अनुसार उषा काल के पाँच घटी पहले का समय होता है।अर्थात यदि सूर्य उदय छह बजे सुबह का है तो सूर्य उदय से 5 घटी अर्थात दो घण्टे पहले से उषा काल होगा अर्थात यदि सुबह4 बजे से उषा काल है तो इस 4 बजे केउषा के पहले दो घण्टे का समय अर्थात दो बजे से ब्राह्म मुहूर्त होगा।यदि सूर्य उदय सात बजे है तो उषा काल5 बजे से और ब्राह्म मुहूर्त 3 बजे से होगा।

ब्राह्म उषा अरुणोदय आदि की यह समय गणना सूर्य उदय के वास्तविक समय (जो साढ़े पांच से साढ़े छह-सात बजे तक ऋतु अनुसार हो सकता है ) और नगर के अक्षांश अनुसार बदलती रहेगी। इस ब्राह्म मुहूर्त पर विस्तृत पोस्ट पहले प्रेषित कर चुका हूँ।

यहाँ यह विचारणीय है कि हम सनातन धर्मियों में से कितने एक बार भी उक्त तीन समय में से किसी एक समय का पालन करते हुए ध्यान कर पाते हैं ?

◆चलते चलते:वैसे ध्यान जब भी जहाँ भी जिसको जैसा अपनी सुविधा से लग जाए वह सभी हमारी बौद्धिक शारीरिक ऊर्जा बढ़ाने में अतिरिक्त रूप से सहायक तो होता ही है।

ध्यान एकाग्रता है। जैसे सूर्य की बिखरी किरणें एक आतशी शीशे लेंस में से गुजारने पर कागज या काष्ठ में आग लग सकती है ठीक वैसे ही ध्यान की ऊर्जा से उत्पन्न ऊर्जा की स्थिति होती है जो कई बौद्धिक शारिरिक आध्यात्मिक कार्यों में रोग उपचार इत्यादि में नए विचार सृजन में सहायक होती है।

आभार:प्रथम चित्र मेरे मोबाइल से। वनिता कासनियां पंजाब चित्र ल्से।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

🦜🦜🦜🦜🦜🦜🦜🦜🦜🦜*(को लै गयो लाली की चुनरी)* By वनिता कासनियां पंजाब *🌳बाबा श्री माधव दास जी बरसाने में श्री किशोरी जी के दर्शन के लिए मंदिर की सीढ़ियों से चढ़ते हुए मन ही मन किशोरी जी से प्रार्थना कर रहे हैं....*.*🦚कि हे किशोरी जी मुझे प्रसाद में आपकी वह चुन्नी मिल जाए जिसे आप ओढ़े हुए हो तो मैं धन्य हो जाऊं...*.*🦚और आज ऐसा संयोग बना किशोरी जी की कृपा से पुजारी जी की मन में आया और उन्होंने चलते समय बाबा को श्री किशोरी जी की चुन्नी प्रसाद में दे दी...*.*🦚प्रसाद में चुन्नी को पाकर श्री किशोरी जी की कृपा का अनुभव करके बाबा की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा और सीढ़ियों से नीचे उतरने के पश्चात आनंद मध्य लगभग नृत्य करते हुए माधवदास बाबा जैसे ही सड़क की ओर चले...*.*🦚तो आठ वर्ष का एक सांवला सलौना बालक, जिसके घुंघराले बाल और मधुर मुस्कान थी। बाबा के पास आकर बोला-*.*🦚बाबा ! जे चुन्नी मोकूँ दे दे। बाबा बालक की ओर निहारते बोले- लाला बाजार ते दूसरो ले लै। मैं तोकूँ रुपया दे रहौ हूं। ऐसा कहिकै बाबा ने एक रुपया निकारि कै दियौ।*.*🦚बालक ने कहा -बाबा ! मोकूँ पैसा नाय चाहिए। मोकूँ तो जेई चुनरी चाहिए।* .*🦚बाबा बोले- ये चुनरी श्री जी की प्रसादी है। भैया मैं जाय चुन्नी तो नाय दूंगौ। ऐसो कहिकै बाबा ने चुन्नी को अपने हृदय से लगा लिया और आगे चल दिए।*.*🦚थोड़ी दूर ही गए होंगे कि इतने में ही पीछे ते बालक दौड़तो भयो आयौ और बाबा के कंधे पै ते चुन्नी खींच कै भाग गयौ।* .*🦚बाबा कहते रह गए -अरे ! मेरी बात तो सुनौ लेकिन वह कहां सुनने वाला था। बाबा ठगे हुए से खड़े विचार करते ही करते रह गए कि बालक कौनथा। जो इस प्रकार चुन्नी खींच कर ले गया ।*.*🦚चुन्नी कि इस प्रकार चले जाने से बाबा उदासी में श्री धाम वृंदावन लौट आए।*.*🦚शाम को बाबा श्री बिहारी जी के दर्शन के लिए आए तो देखा आज श्रीबिहारीजी के परम आश्चर्यमय दर्शन हो रहे हैं।*.*🦚जो चुनरी श्रीजी के मंदिर में से बाबा को प्रसादी रूप से प्राप्त हुई थी और बरसाने में सांवला बालक छीनकर भाग गया था। वही चुनरी श्री बिहारी जी धारण किए हुए मंद मंद मुस्कुरा रहे थे।*.*🦚बाबा माधवदास जी महाराज प्रसंनता से भर कर बोले -अच्छा ! तो वह ठग बालक आप ही थे। अरे कुछ देर तो मेरे पास श्रीजी की प्रसादी चुनरी को रहने दिया होता।।**🦚बिहारी जी अपने भक्तो से इसी प्रकार लीला करते हैं, ठाकुर जी अपने भक्तो पर कृपा करें।**श्री कुंज बिहारी श्री हरिदास 🙏*♾️♾️♾️♾️♾️♾️♾️♾️♾️♾️♾️🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁ऐसे और पोस्ट देखने के लिए और एक खूबसूरत सी कहानी से जुड़ने के लिए क्लिक करें 👇👇बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम

🦜🦜🦜🦜🦜🦜🦜🦜🦜🦜 *(को लै गयो लाली  की चुनरी)* By वनिता कासनियां पंजाब *🌳बाबा श्री माधव दास जी बरसाने में श्री किशोरी जी के दर्शन के लिए मंदिर की सीढ़ियों से चढ़ते हुए मन ही मन किशोरी जी से प्रार्थना कर रहे हैं....* . *🦚कि हे किशोरी जी मुझे प्रसाद में आपकी वह चुन्नी मिल जाए जिसे आप ओढ़े हुए हो तो मैं धन्य हो जाऊं...* . *🦚और आज ऐसा संयोग बना किशोरी जी की कृपा से पुजारी जी की मन में आया और उन्होंने चलते समय बाबा को श्री किशोरी जी की चुन्नी प्रसाद में दे दी...* . *🦚प्रसाद में चुन्नी को पाकर श्री किशोरी जी की कृपा का अनुभव करके बाबा की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा और सीढ़ियों से नीचे उतरने के पश्चात आनंद मध्य लगभग नृत्य करते हुए माधवदास बाबा जैसे ही सड़क की ओर चले...* . *🦚तो आठ वर्ष का एक सांवला सलौना बालक, जिसके घुंघराले बाल और मधुर मुस्कान थी। बाबा के पास आकर बोला-* . *🦚बाबा ! जे चुन्नी मोकूँ दे दे। बाबा बालक की ओर निहारते बोले- लाला बाजार ते दूसरो ले लै। मैं तोकूँ रुपया दे रहौ हूं। ऐसा कहिकै बाबा ने एक रुपया निकारि कै दियौ।* . *🦚बालक ने कहा -बाबा ! मोकूँ पैसा नाय चाहिए। मोकूँ...