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पांडवों का जन्म


By वनिता कासनियां पंजाब द्वारा !!


पिछले पोस्ट में हमने देखा किस तरह धृतराष्ट्र और पाण्डु का जन्म हुआ, इस पोस्ट में हम बात करेंगे पांडवों के जन्म के बारे में । अगर आपने पिछली पोस्ट नहीं पड़ी तो यहां क्लिक करके पड़ सकते हैं – महाभारत की शुरुआत


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जब अंधे धृतराष्ट्र का जन्म हुआ तब सत्यवती ने कहा कि यह तो गड़बड़ है क्योंकि अंधा पुत्र राजा नहीं बन सकता । सत्यवती ने अंबिका से दोबारा पुत्र पैदा करने को कहा । इस बार अंबिका डर गईं और उन्होंने कहा कि इतने डरावने व्यक्ति को में दोबारा नहीं देख सकती । इसलिए उन्होंने अपनी दासी को अपनी जगह पर भेज दिया । दासी बहुत ही धार्मिक थी और वेद व्यास जी का सम्मान करती थी इसलिए उनसे एक बड़े ही योग्य पुत्र प्राप्त हुए । ये पुत्र थे विदुर जो कि पहले धर्मराज थे लेकिन मांडव्य मुनि के श्राप के कारण इन्हें दासी पुत्र के रूप में जन्म लेना पड़ा ।


मांडव्य मुनि की कथा हमने पहले ही एक पोस्ट में बताई है, किस तरह मांडव्य मुनि ने धर्मराज को श्राप दिया , पूरा पड़ने के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं – बच्चो को पाप क्यों नहीं लगता जानें एक कथा के माध्यम से


धृतराष्ट्र का विवाह

धृतराष्ट्र के विवाह के लिए कोई योग्य कन्या की तलाश जारी थी । तभी पता चला कि गांधार नरेश की पुत्री गांधारी बहुत ही सुंदर और गुणवान है । हस्तिनापुर से धृतराष्ट्र के विवाह का प्रताव गांधार भेजा गया जिसने बताया गया था कि धृतराष्ट्र में बहुत सारे गुण है लेकिन सिर्फ एक ही दिक्कत है कि वो अंधे हैं ।


गांधार नरेश ने माना करने का सोचा लेकिन यह प्रताव कुरु वंश से आया हुआ था इसलिए धृतराष्ट्र के अंधे होने पर भी उन्होंने हां कर दी । गांधारी ने भी कुरु वंश का सम्मान करते हुए शादी की और अपने पति के प्रति व्रत धर्म को दिखाने के लिए अपनी आंखों पर हमेशा के लिए पट्टी बांध ली ।


गांधारी ने सोचा कि जब मेरे पति ही अंधे हैं तो मुझे भी अंधा बनकर रहना चाहिए लेकिन ऐसा करना उचित नहीं है क्योंकि ऐसा करने से वो न तो अपने पति की सेवा सही से कर सकती थीं और साथ ही न देखने के कारण अपने बच्चों को उचित संस्कार भी नहीं दे पायीं । गांधारी को आर्शीवाद मिला कि जब भी वे अपनी आंखों की पट्टी खोलकर किसी को देखेंगी तो उसका शरीर बज्र का हो जायेगा ।


पाण्डु का विवाह

भगवान श्री कृष्ण के पिता वसुदेव के बारे में तो आप जानते ही हैं । वासुदेव के पिता जी का नाम था सूरसेन और उनकी एक बहन थीं जिनका नाम था प्रथा । सूरसेन जी ने अपनी पुत्री को कुंतीभोज को दे दिया था क्योंकि उनके यहां कोई संतान नहीं हो रही थी जिस कारण सूरसेन जी की पुत्री का नाम पड़ा कुंती ।


एक दुर्वासा मुनि कुंती के यहां आए और कुंती ने उनकी बड़े ही अच्छे से सेवा की जिससे प्रसन्न होकर दुर्वासा मुनि ने उनको एक मंत्र दिया । मंत्र की मदद से कुंती किसी भी देवता का आवाहन कर सकतीं थी और उनसे एक पुत्र प्राप्त कर सकती थीं ।


कुंती ने इस मंत्र का परीक्षण करने के लिए सूर्य देवता का आवाहन किया जिनसे उन्हें अपना पहला पुत्र कर्ण प्राप्त हुआ । लेकिन अभी कुंती की शादी नहीं हुई थी इसलिए उन्होंने कर्ण को नदी में बहा दिया ।


आगे चलकर कुंतीभोज ने राजकुमारी कुंती के विवाह के लिए स्वयंवर की रचना की जिसमे कई महान राजा आए हुए थे लेकिन कुंती ने पाण्डु को चुना और दोनो का विवाह हो गया ।


इसी के साथ भीष्म पितामह की इच्छा थी कि पाण्डु इतने कुशल राजा बनने वाले हैं इसलिए उनकी एक और पत्नी भी होनी चाहिए इसलिए पाण्डु का दूसरा विवाह हुआ माद्री से । इसके बाद पाण्डु ने कुछ समय अपने राज्य में व्यतीत किया और फिर विश्व विजेता बनने के अपने अभियान पर निकल गए ।


पांडवों का जन्म

पाण्डु ने कई सारे राज्यों को जीता और एक बहुत ही महान राजा के रूप में शासन किया लेकिन एक समय जब वे जंगल में शिकार कर रहे थे तब उनका तीर एक ऋषि को लग गया । ऋषि एक हिरण के रूप में थे और तीर लगते ही इंसान के रूप में आ गए ।


ऋषि उसे समय एक हिरणी के साथ रमण कर रहे थे और तीर लगने पर उन्होंने पाण्डु श्राप दिया कि जिस तरह इस अवस्था में पाण्डु में उनको तीर मारा है उसी तरह जब पाण्डु अपनी पत्नी के साथ रमण करने का प्रयास करेंगे उनकी मृत्यु हो जायेगी ।


यह श्राप मिलने के बाद पाण्डु ने अपना राज्य छोड़ दिया और जंगल में चले गए । कुंती और माद्री भी उनके साथ जंगल चलीं गई । पाण्डु कई आश्रमों में जया करते थे, ऋषियों से हरी कथा सुना करते थे और ध्यान किया करते थे ।


एक दिन पाण्डु ने सोचा कि अब उनके बाद राजा कौन बनेगा क्योंकि धृतराष्ट्र अंधे हैं और ऋषि के श्राप के कारण अब उनके पुत्र हो नहीं सकते । कुंती ने पाण्डु को बताया कि उनको दुर्वशा मुनि ने एक वरदान दिया था जिससे वे पुत्र प्राप्त कर सकती हैं ।


पाण्डु ने तुरंत ही इस मंत्र का इस्तेमाल करने को कहा और बताए कि सबसे पहले धर्मराज का आवाहन करें । कुंती ने धर्मराज का आवाहन किया और उनसे उन्हें एक पुत्र प्राप्त हुए जिनका नाम युधिस्ठिर रखा गया । वायु देवता का आवाहन करने पर भीम और इंद्र का आवाहन करने पर अर्जुन प्राप्त हुए ।


इसके बाद माद्री ने उस मंत्र से अश्विनी कुमारों का आवाहन किया जिनसे उन्हे दो पुत्र प्राप्त हुए नकुल और सहदेव । एक दिन पाण्डु जंगल से जा रहे थे तभी उनके अंदर रमण की भावना जागी । वो अपने आप को रोक नहीं पाए और अपनी पत्नी माद्री का संग कर बैठे ।


इस तरह ऋषि का श्राप असर किया और उनकी वहीं पर मृत्यु हो गई । कुंती ने सोचा कि वे भी सती हो जाएंगी लेकिन माद्री ने कहा कि यह सब उनकी वजह से हुआ है इसलिए उनको सती हो जाना चाहिए । इस प्रकार माद्री सती हो गईं और अग्नि में प्रवेश कर गईं ।


आगे की कहानी अगले पोस्ट में बताई गई है । अगला पोस्ट पड़ने के लिए यहां क्लिक करें – कौरवों का जन्म ।


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महाभारत कथा

भाग भाग का शीर्षक

भाग-1 महाभारत की शुरुआत

भाग-2 पांडवों का जन्म

भाग-3 कौरवों का जन्म

भाग-4 द्रोणाचार्य का गुरुकुल

भाग-5 दुर्योधन और कर्ण की मित्रता

भाग-6 पांडवों को जलाने का षड्यंत्र

भाग-7 पांडव दुर्योधन से छिपकर कहां गए

भाग-8 द्रोपदी का विवाह

भाग-9 इंद्रप्रस्थ का निर्माण किसने किया

भाग-10 जरासंध को किसने मारा

भाग-11 शिशुपाल वध, भगवान ने शिशुपाल के 100 पाप क्यों क्षमा किए

भाग-12 पांडव और कौरव के बीच चौसर का खेल

भाग-13 पांडवों का वनवास

जब शकुनी ने कपटपूर्वक चौसर खेला तब भगवान कृष्ण कहां थे

भाग-14 अर्जुन और शिव जी का युद्ध, किसकी हुयी जीत

भाग-15 अर्जुन की स्वर्ग यात्रा, उर्वशी द्वारा अर्जुन को श्राप

भाग-16 राजा नल की कहानी – नल और दमयंती का विवाह कैसे हुआ

भाग-17 राजा नल की गरीबी, कलयुग ने ईर्ष्यावश सारा राज्य छीन लिया

भाग-18 राजा नल की कथा, नल ने अपना राज्य वापिस केसे जीता

भाग-19 युधिस्ठिर गए तीर्थ, नारद जी ने बताया प्रयाग तीर्थ का महत्व

भाग-20 अगस्त्य मुनि की कहानी, अगस्त्य मुनि ने समुंद्र केसे सुखाया

भाग-21 श्रृंगी ऋषि कौन थे, श्रृंगी ऋषि एक हिरण से पैदा कैसे हुए?

भाग-22 युवनाश्व राजा की कहानी जिन्होंने एक पुत्र को जन्म दिया

भाग-23 पांडवों की स्वर्ग यात्रा, अर्जुन से मिलने के लिए स्वर्ग गए


भाग-24 नहुष कौन थे? नहुष इंद्र थे लेकिन एक श्राप के कारण अजगर बन गए

भाग-25 पांडवों ने दुर्योधन को गंधर्वों से क्यों बचाया



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