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कहानियां रिक्शावाला की अजब कहानी -1 BY V.K.P द ोपहर का समय था और मैं ( राजेंदर) खाना खा कर अपने रिक्शा पर बैठा आराम कर रहा था | थोड़ी ही देर में ही मुझे गुज़रे समय की बातें याद आ रही थी | मैं अपने अतीत में खो गया | बीती हुई बातें चलचित्र की तरह दिमाग में एक एक कर आने लगा |आज भी याद है मुझे , कितनी ख़ुशी हुई थी जब मेरा मेट्रिक का रिजल्ट आया था और मैंने अच्छे अंको से पास किया था | पुरे गाँव में मिठाइयाँ बांटी गई थी /उसके बाद, कॉलेज का वह पहला दिन आज तक भी नहीं भुला हूँ | जहाँ अनजान दोस्तों के बीच मुझे थोड़ी झिझक भी हो रही थी |लेकिन बड़ा आदमी बनने की ललक और भविष्य के हसीन सपने मेरे उमंगो को परवान चढ़ा रहे थे….. …पर शायद नियति को यह मंज़ूर नहीं था |फिर एक दिन मेरे जीवन में एक भूचाल सा आ गया ..अचानक मेरे पिता जी की मौत हो गई | डॉक्टर ने बताया कि उन्हें निमोनिया हो गया था |परिवार में कोहराम मच गया | और फिर मेरे कन्धों पर घर का सारा बोझ आ गया | मैंने कॉलेज की पढाई बीच में ही छोड़ दी और नौकरी की तलाश शुरू कर दी |बहुत चक्कर लगाए पर बात कहीं भी बनी नहीं |एक दिन मैं यूँही बैठा पेपर में vacancy देख रहा था तभी मेरी नज़र एक विज्ञापन पर पड़ी थी |उसमे गार्ड की नौकरी के बारे में विज्ञापन था | मैंने ऑफिस का पता नोट किया और दुसरे ही दिन अपने गाँव मुरैना, (दरभंगा) से चल कर पटना पहुँच गया |.पटना स्थित ऑफिस में enrollment के नाम पर मुझसे ५०० रूपये वसूले गए | तीन दिनों के बाद ५०० रुपया और लेकर उन्होने मेरे हाथ में अंततः जोइनिंग लेटर थमा दिया गया | लेटर पाकर मैं बहुत खुश हुआ था, सोचा कि अब मेरे दुःख – दर्द दूर हो जायेंगे |जब जोइनिंग लेटर खोल कर देखा तो उसमे वाराणसी का पता दिया हुआ था और वहाँ जाकर नौकरी ज्वाइन करने की बात थी | मुझे बहुत निराशा हुई और मैंने ऑफिस वालों से पटना में ही कही जोइनिंग कराने का आग्रह किया |लेकिन कंपनी वालों ने मना कर दिया और साफ़- साफ़ कहा …जाना है तो जाओ, नहीं तो फिर छोड़ दो |लाचार होकर मैं वाराणसी पहुँचा | यहाँ पहुँच कर मैं काफी इधर उधर भटका, लेकिन इस नाम की कंपनी मुझे नहीं मिली | मुझे एहसास हो गया था कि मैं ठगी का शिकार हो चूका हूँ |अब तो मेरे सामने कोई चारा नहीं था, सिवाए इसके कि दूसरी नौकरी यही पर ढूंढा जाए |दो दिनों तक घूम- घूम कर नौकरी ढूंढता रहा, लेकिन हर जगह एक ही सवाल….तुम्हारे लिए कोई सिक्यूरिटी देने वाला है ?मैं तो दरभंगा के एक छोटे से गाँव का रहने वाला, भला इतने बड़े बनारस शहर में मुझे कौन जानता |बचे पैसे भी समाप्त हो गए | सरकारी रैन बसेरा में अपना ठिकाना था जहाँ रिक्शे वाले आराम किया करते थे |चूँकि पैसे ख़तम हो चुके थे और मैं भूखा – प्यासा उस रैन बसेरा में उदास बैठा हुआ था | तभी रघु काका, जिनकी उम्र लगभग ६० साल की रही होगी. मेरे पास आये और पूछा …इस शहर में नए हो ?मैंने अपनी सारी कहानी सुना दी कि कैसे मैं ठगी का शिकार हुआ हूँ |शायद मेरी बातों को सुन कर उनको मुझ पर दया आयी और उन्होंने उपनी पोटली खोली जिसमे रोटी और साग था | खुद खाने लगे और मुझे भी दो रोटियां खाने को दी |मैं कल रात से कुछ भी नहीं खाया था, सो मैं जल्दी से वो रोटियां ले ली |खाने के दौरान उन्होंने कहा …देखो राजू, तुम इस शहर में नए हो और बिना जान पहचान के काम नहीं मिल सकता है | इसलिए मेरी मानो तो मेरी रिक्शा को तुम दिन में चलाओ और उसके बदले मुझे कुछ पैसे दे दिया करना | तुम्हे भी चार पैसे हो जायेंगे |मुझ बूढ़े को गर्मी के कारण दिन में रिक्शा चलाने में परेशानी होती है, इसलिए मैं इसे रात में चलाऊंगा |मरता क्या ना करता | पेट की भूख को शांत करने के लिए कोई भी काम तो करना ही पड़ेगा | मैंने उनकी सलाह मान ली और रिक्शे वालों की जमात में शामिल हो गया |अचानक मेरी तन्द्रा टूटी जब रघु काका ने आवाज़ लगाई |कहाँ खो गए राजू बेटा …रघु काका की आवाज़ सुन कर आँखे खोल कर उनको देखा |रिक्शा ले कर जाओ …रतन सेठ ने बुलाया है | शायद संकट मोचन मंदिर जाना है उन्हें…. रघु काका ने कहा |ठीक है काका, मैं अभी जाता हूँ …मैंने कहा और रिक्शा लेकर चल दिया |एक पढ़ा लिखा और स्मार्ट रिक्शा वाला होने के कारण जमात में अपनी धाक जम गई और फिर मुझे काम की कमी न रही | लगा अब ज़िन्दगी की गाड़ी पटरी पर आ गई है |इस तरह मैं राजेंदर से राजू रिक्शावाला बन चूका था | पर आज भी मेरे मन में एक सवाल टीसता है कि जब रिक्शा ही चलाना था तो पढाई लिखाई क्यों किया |इस तरह के द्वंद मेरे दिमाग में चलता रहता था … आज भी वह यही सब सोच रहा था |दिन भर रिक्शा चलाने के बाद मैं काफी थक चूका था | मैं अपने लिए जल्दी जल्दी चार रोटियां बनाई और खाना खाने बैठ गया |वह पहला निवाला मुँह में डाला ही था कि मेरी पत्नी राजो की याद आ गई |मुझे अपनी पत्नी के बारे में सोच कर काफी तकलीफ होने लगा | पुरे छ्ह महीने हो गए ..उसे देखे हुए | गरीबी के कारण एक मोबाइल भी राजो को नहीं दिला सका था |हालाँकि वह चिट्ठी लिख लेती थी और यही एक ज़रिया था उसका हाल समाचार जानने का |इस बार सोचा था कि खूब पैसे कमा कर घर जाऊंगा तो एक मोबाइल खरीद कर राजो को दे दूंगा, ताकि जब भी इच्छा हो हमसे जी भर के बातें कर सके |अभी एक साल पहले ही तो शादी हुआ है, लेकिन अभी गवना नहीं हुआ है | मुझे शादी के तुरंत बाद ही अचानक वाराणसी आना पड़ा | यह सच है कि पेट की भूख और रोजी रोटी के चक्कर में अपना देश ही छुट जाता है | यहाँ काम करूँगा तभी तो घर पैसा भेज पाउँगा |लेकिन इस बार एक विदेशी पर्यटक मिल गयी थी “अंजिला” | रेलवे स्टेशन पर अचानक उससे टकरा गया |मुझे सवारी की तलाश थी और उसे एक रिक्शावाले की | विदेशी जान कर सभी रिक्शावाले भाडा बढ़ा – चढ़ा कर मांग रहे थे |मैं चुप चाप लोगों के तमाशे देख रहा था कि किस तरह विदेश से आये मेहमान को हमलोग लुटने का प्रयास करते है |मुझे भीड़ से अकेला अलग बैठा देख कर अचानक वो मेम मेरे पास आयी और अंग्रेजी में संकट मोचन मंदिर जाने के लिए कहा |मुझे तो इंग्लिश आती थी इसलिए मैं इंग्लिश में जबाब देते हुए कहा — मंदिर दो किलोमीटर दूर है और मैं सिर्फ ५० रूपये लूँगा |मुझे अंग्रेजी में बात करता देख वह प्रभावित हो गई और मेरे रिक्शे में बैठ गई |इतने रिक्शा वालो के बीच उसने मेरा ही रिक्शा पसंद किया | फिर क्या था , एक बार जो रिक्शे पर बैठाया , तो बस उसने मेरे रिक्शे को और मुझे अपने पास ही रख लिया | वो नहीं चाहती थी कि मैं कोई दूसरी सवारी को अपने रिक्शे पर बैठाऊं | मैं दिन भर के जितने भी पैसे मांगता वो तुरंत दे देती |मुझे भी आराम हो गया था , बस रिक्शा तभी चलाता जब मेम साहिबा को कही जाना होता वर्ना उसके होटल के बाहर ही रिक्शा लगा रहता | वो जब से इंडिया आयी थी , मेरे साथ और मेरे रिक्शा पर ही घुमती थी | इसके अनेक कारण थे | ..एक तो मैं पढ़ा लिखा था, जवान था और उसकी भाषा इंग्लिश का थोडा – थोडा ज्ञान भी था |मुझे तो उसकी बातों के लगा कि वो यहाँ कोई शोध (Research ) कर रही है | शायद वाराणसी नगरी पर और यहाँ के धार्मिक आस्था पर शोध कर रही है |इसीलिए तो रोज़ कभी बाबा विश्वानाथ का मंदिर तो कभी शंकट मोचन मंदिर मेरे रिक्शे पर ही जाती रहती है |और अपनी डायरी में कुछ ना कुछ लिखते रहती है …..मुझे तो उसने अपना गाइड ही बना लिया है | बहुत सारी जानकारी मुझसे भी लेती रहती है | मैं तो पिछले दो साल से वाराणसी नगरी में रिक्शा चला रहा हूँ |अतः बहुत सारी जानकारी आसानी से दे पाता हूँ और जो जानकारी मुझे नहीं रहती है, उसे आस पास के लोगों से पूछ कर उसे बता देता हूँ | जैसे जैसे समय गुजरता गया मैं तो उसके स्वभाव, आकर्षक चेहरा और उसकी उन्मुक्त हँसी का दीवाना होता चला गया |उसमे एक अजीब तरह का आकर्षण था | वो तो अब मेरे साथ ही खाना खाती, वाराणसी शहर का भ्रमण और मेरे खाने पिने के अलावा मेरे कपडे वगरह का भी ख्याल रखती है | इतना ही नहीं , वो अपने दिल की बात भी बताती है | मैं अनायास ही उसकी ओर आकर्षित होता जा रहा था …./ ( क्रमशः )





कहानियां

रिक्शावाला की अजब कहानी -1


दोपहर का समय था और मैं ( राजेंदर) खाना खा कर अपने रिक्शा पर बैठा आराम कर रहा था | थोड़ी  ही देर में ही मुझे गुज़रे समय की बातें याद आ रही थी | मैं अपने अतीत में खो गया | बीती हुई बातें चलचित्र की तरह दिमाग में एक एक कर आने लगा |

आज भी याद है मुझे , कितनी ख़ुशी हुई थी जब मेरा मेट्रिक का रिजल्ट आया था और मैंने अच्छे अंको से पास किया था | पुरे गाँव में मिठाइयाँ बांटी गई थी /

उसके बाद, कॉलेज का वह पहला दिन आज तक भी नहीं भुला हूँ | जहाँ अनजान दोस्तों के बीच मुझे थोड़ी झिझक भी हो रही थी |

लेकिन बड़ा आदमी बनने की ललक और भविष्य के हसीन सपने मेरे उमंगो को परवान चढ़ा रहे थे….. …पर शायद नियति को यह मंज़ूर नहीं था |

फिर एक दिन  मेरे जीवन में एक भूचाल सा आ गया ..अचानक मेरे पिता जी की मौत हो गई | डॉक्टर ने बताया कि उन्हें निमोनिया हो गया था |

परिवार में कोहराम मच गया | और फिर मेरे कन्धों पर घर का सारा बोझ आ गया | मैंने  कॉलेज की पढाई बीच में ही छोड़ दी और नौकरी की तलाश शुरू कर दी |

बहुत चक्कर लगाए पर बात कहीं भी बनी नहीं |

एक दिन मैं यूँही बैठा पेपर में vacancy देख रहा था तभी मेरी नज़र एक विज्ञापन पर पड़ी थी |

उसमे गार्ड की नौकरी के बारे में विज्ञापन था | मैंने ऑफिस का पता नोट किया और दुसरे ही दिन अपने गाँव मुरैना, (दरभंगा) से चल कर पटना पहुँच गया |.

पटना स्थित ऑफिस में enrollment के नाम पर मुझसे ५०० रूपये वसूले गए |  तीन दिनों के बाद ५०० रुपया और लेकर उन्होने मेरे हाथ में अंततः जोइनिंग लेटर थमा दिया गया | 

लेटर पाकर मैं बहुत खुश हुआ था, सोचा कि अब मेरे  दुःख – दर्द दूर हो जायेंगे  |

जब जोइनिंग लेटर खोल कर देखा तो उसमे वाराणसी का पता दिया हुआ था और वहाँ जाकर नौकरी ज्वाइन करने की बात थी | मुझे बहुत निराशा हुई और मैंने ऑफिस वालों से पटना में ही कही जोइनिंग कराने का आग्रह किया |

लेकिन कंपनी वालों ने  मना  कर दिया और साफ़- साफ़ कहा …जाना है तो जाओ, नहीं तो फिर छोड़ दो |

लाचार होकर मैं वाराणसी पहुँचा | यहाँ पहुँच कर मैं काफी इधर उधर भटका, लेकिन इस नाम की कंपनी मुझे नहीं मिली | मुझे एहसास  हो गया था कि मैं ठगी का शिकार हो चूका हूँ |

अब तो मेरे सामने कोई चारा नहीं था, सिवाए इसके कि दूसरी नौकरी यही पर ढूंढा जाए |

दो दिनों तक घूम- घूम कर नौकरी ढूंढता रहा, लेकिन हर जगह एक ही सवाल….तुम्हारे लिए कोई सिक्यूरिटी देने वाला है ?

मैं तो दरभंगा के एक छोटे से गाँव का रहने वाला, भला इतने बड़े बनारस शहर में मुझे कौन जानता |

बचे पैसे भी समाप्त हो गए | सरकारी रैन बसेरा में अपना ठिकाना था जहाँ रिक्शे वाले आराम किया करते थे |

चूँकि पैसे ख़तम  हो चुके थे और मैं भूखा – प्यासा उस रैन बसेरा में उदास बैठा हुआ था | तभी रघु काका, जिनकी उम्र लगभग ६० साल की रही होगी. मेरे पास आये और पूछा …इस शहर में नए हो ?

मैंने अपनी सारी कहानी सुना दी कि कैसे मैं ठगी का शिकार हुआ हूँ |

शायद मेरी बातों को सुन कर उनको मुझ पर दया आयी और उन्होंने उपनी पोटली खोली जिसमे रोटी और साग था | खुद खाने लगे और मुझे भी दो रोटियां खाने को दी |

मैं कल रात से कुछ भी नहीं खाया था, सो मैं जल्दी से वो रोटियां ले ली |

खाने के दौरान उन्होंने कहा …देखो राजू, तुम इस शहर में नए हो और बिना जान पहचान के काम नहीं मिल सकता है | इसलिए मेरी मानो तो मेरी रिक्शा को तुम दिन में चलाओ और उसके बदले मुझे कुछ पैसे दे दिया करना | तुम्हे भी चार पैसे हो जायेंगे |

मुझ बूढ़े को  गर्मी के कारण दिन में  रिक्शा चलाने में परेशानी होती है, इसलिए मैं इसे रात में चलाऊंगा |

मरता क्या ना करता |  पेट की भूख को शांत करने के लिए कोई भी काम तो करना ही पड़ेगा | मैंने  उनकी  सलाह मान ली और रिक्शे वालों की जमात में शामिल हो गया |

अचानक मेरी तन्द्रा टूटी जब रघु काका ने आवाज़ लगाई |

कहाँ खो गए राजू बेटा …रघु काका की आवाज़ सुन कर आँखे खोल कर उनको देखा |

रिक्शा ले कर जाओ …रतन सेठ ने बुलाया है | शायद संकट मोचन मंदिर जाना है उन्हें…. रघु काका ने कहा |

ठीक है काका, मैं अभी जाता हूँ …मैंने कहा और रिक्शा लेकर चल दिया |

एक पढ़ा लिखा और स्मार्ट रिक्शा वाला होने के कारण जमात में अपनी  धाक जम गई और फिर मुझे  काम  की कमी न रही | लगा अब ज़िन्दगी की गाड़ी पटरी पर आ गई है |

इस तरह मैं राजेंदर से राजू रिक्शावाला बन चूका था  | पर आज भी मेरे मन में एक सवाल टीसता है कि जब रिक्शा ही चलाना था तो पढाई लिखाई क्यों किया |

इस तरह के द्वंद मेरे दिमाग में चलता रहता था … आज भी वह यही सब सोच रहा था |

दिन भर रिक्शा चलाने के बाद मैं  काफी थक चूका था |  मैं अपने लिए जल्दी जल्दी चार रोटियां बनाई  और खाना खाने बैठ गया |

वह पहला निवाला मुँह में डाला ही था कि मेरी पत्नी राजो की याद आ गई |

मुझे अपनी पत्नी  के बारे में सोच कर काफी तकलीफ होने लगा | पुरे छ्ह महीने हो गए ..उसे देखे हुए |  गरीबी के कारण एक मोबाइल भी राजो  को नहीं दिला सका था |

हालाँकि वह  चिट्ठी लिख लेती थी और यही  एक ज़रिया था उसका हाल समाचार जानने का |

इस बार सोचा था कि खूब पैसे कमा कर घर जाऊंगा तो एक मोबाइल खरीद कर राजो को दे दूंगा, ताकि जब भी इच्छा हो हमसे जी भर के बातें कर सके |

अभी एक साल पहले ही तो शादी हुआ है, लेकिन अभी गवना नहीं हुआ है | मुझे शादी के तुरंत बाद ही अचानक वाराणसी आना पड़ा | यह सच है कि पेट की भूख और रोजी रोटी के चक्कर में अपना देश ही छुट जाता है | यहाँ काम करूँगा तभी तो घर पैसा भेज पाउँगा |

लेकिन इस बार एक विदेशी पर्यटक मिल गयी थी “अंजिला” | रेलवे स्टेशन पर अचानक उससे टकरा गया |

मुझे सवारी  की तलाश थी और उसे एक रिक्शावाले की | विदेशी जान कर सभी रिक्शावाले भाडा बढ़ा – चढ़ा कर मांग रहे थे |

मैं चुप चाप लोगों के तमाशे देख रहा था कि किस तरह विदेश से आये मेहमान को हमलोग लुटने का प्रयास करते है |

मुझे भीड़ से अकेला अलग बैठा देख कर अचानक वो मेम मेरे पास आयी और  अंग्रेजी में संकट मोचन मंदिर जाने के लिए कहा |

मुझे तो इंग्लिश आती थी इसलिए मैं इंग्लिश में जबाब देते हुए कहा — मंदिर दो किलोमीटर दूर है और मैं सिर्फ ५० रूपये लूँगा |

मुझे अंग्रेजी में बात करता देख वह प्रभावित हो गई और मेरे रिक्शे में बैठ गई |

इतने रिक्शा वालो के बीच  उसने मेरा ही रिक्शा पसंद किया | फिर क्या था , एक बार जो रिक्शे पर बैठाया , तो बस उसने मेरे रिक्शे को और मुझे अपने पास ही रख लिया | वो नहीं चाहती थी कि मैं कोई दूसरी सवारी को अपने रिक्शे पर बैठाऊं | मैं दिन भर के जितने भी पैसे मांगता वो तुरंत दे देती |

मुझे भी आराम हो गया था , बस रिक्शा तभी चलाता  जब मेम साहिबा को  कही जाना होता वर्ना उसके  होटल के बाहर ही रिक्शा लगा रहता |

 वो जब से इंडिया आयी थी , मेरे साथ और मेरे रिक्शा पर ही घुमती थी | इसके अनेक कारण थे | ..एक तो मैं पढ़ा लिखा था, जवान था और उसकी भाषा इंग्लिश का थोडा – थोडा ज्ञान भी था |

मुझे तो उसकी बातों के लगा  कि वो  यहाँ कोई  शोध (Research ) कर रही है | शायद वाराणसी नगरी पर और  यहाँ के धार्मिक आस्था पर शोध कर रही है |

इसीलिए तो रोज़ कभी बाबा विश्वानाथ का मंदिर तो कभी शंकट मोचन मंदिर मेरे रिक्शे पर ही जाती रहती है |

और अपनी  डायरी में कुछ ना कुछ लिखते रहती है …..मुझे तो उसने अपना गाइड ही बना लिया है | बहुत सारी जानकारी मुझसे भी लेती रहती है | मैं तो पिछले दो  साल से वाराणसी नगरी में रिक्शा चला रहा हूँ |

अतः बहुत सारी जानकारी आसानी से दे पाता  हूँ  और जो जानकारी मुझे नहीं रहती है,  उसे आस पास के लोगों से पूछ कर उसे बता देता हूँ |  

जैसे जैसे समय गुजरता गया मैं तो उसके  स्वभाव, आकर्षक  चेहरा और उसकी उन्मुक्त हँसी का दीवाना होता चला गया |

उसमे एक अजीब तरह का आकर्षण था | वो तो अब मेरे साथ ही खाना खाती, वाराणसी शहर का भ्रमण और मेरे खाने पिने के अलावा मेरे कपडे वगरह का भी ख्याल रखती है | इतना ही नहीं , वो अपने दिल की बात भी बताती है | मैं अनायास ही उसकी ओर आकर्षित होता जा रहा था …./ ( क्रमशः )

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