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राजा दशरथ के मुकुट का एक अनोखा राज, पहले कभी नही सुनी होगी यह कथा आपने !!!!!!!!!!अयोध्या के राजा दशरथ एक बार भ्रमण करते हुए वन की ओर निकले वहां उनका समाना बाली से हो गया। राजा दशरथ की किसी बात से नाराज हो बाली ने उन्हें युद्ध के लिए चुनोती दी। राजा दशरथ की तीनो रानियों में से कैकयी अश्त्र शस्त्र एवं रथ चालन में पारंगत थी।अतः अक्सर राजा दशरथ जब कभी कही भ्रमण के लिए जाते तो कैकयी को भी अपने साथ ले जाते थे इसलिए कई बार वह युद्ध में राजा दशरथ के साथ होती थी। जब बाली एवं राजा दशरथ के मध्य भयंकर युद्ध चल रहा था उस समय संयोग वश रानी कैकयी भी उनके साथ थी।युद्ध में बाली राजा दशरथ पर भारी पड़ने लगा वह इसलिए क्योकि बाली को यह वरदान प्राप्त था की उसकी दृष्टि यदि किसी पर भी पद जाए तो उसकी आधी शक्ति बाली को प्राप्त हो जाती थी। अतः यह तो निश्चित था की उन दोनों के युद्ध में हर राजा दशरथ की ही होगी।राजा दशरथ के युद्ध हारने पर बाली ने उनके सामने एक शर्त रखी की या तो वे अपनी पत्नी कैकयी को वहां छोड़ जाए या रघुकुल की शान अपना मुकुट यहां पर छोड़ जाए। तब राजा दशरथ को अपना मुकुट वहां छोड़ रानी कैकेयी के साथ वापस अयोध्या लौटना पड़ा।रानी कैकयी को यह बात बहुत दुखी, आखिर एक स्त्री अपने पति के अपमान को अपने सामने कैसे सह सकती थी। यह बात उन्हें हर पल काटे की तरह चुभने लगी की उनके कारण राजा दशरथ को अपना मुकुट छोड़ना पड़ा।वह राज मुकुट की वापसी की चिंता में रहतीं थीं। जब श्री रामजी के राजतिलक का समय आया तब दशरथ जी व कैकयी को मुकुट को लेकर चर्चा हुई। यह बात तो केवल यही दोनों जानते थे।कैकेयी ने रघुकुल की आन को वापस लाने के लिए श्री राम के वनवास का कलंक अपने ऊपर ले लिया और श्री राम को वन भिजवाया। उन्होंने श्री राम से कहा भी था कि बाली से मुकुट वापस लेकर आना है।श्री राम जी ने जब बाली को मारकर गिरा दिया। उसके बाद उनका बाली के साथ संवाद होने लगा। प्रभु ने अपना परिचय देकर बाली से अपने कुल के शान मुकुट के बारे में पूछा था। तब बाली ने बताया- रावण को मैंने बंदी बनाया था। जब वह भागा तो साथ में छल से वह मुकुट भी लेकर भाग गया। प्रभु मेरे पुत्र को सेवा में ले लें। वह अपने प्राणों की बाजी लगाकर आपका मुकुट लेकर आएगा।जब अंगद श्री राम जी के दूत बनकर रावण की सभा में गए। वहां उन्होंने सभा में अपने पैर जमा दिए और उपस्थित वीरों को अपना पैर हिलाकर दिखाने की चुनौती दे दी। रावण के महल के सभी योद्धा ने अपनी पूरी ताकत अंगद के पैर को हिलाने में लगाई परन्तु कोई भी योद्धा सफल नहीं हो पाया।जब रावण के सभा के सारे योद्धा अंगद के पैर को हिला न पाए तो स्वयं रावण अंगद के पास पहुचा और उसके पैर को हिलाने के लिए जैसे ही झुका उसके सर से वह मुकुट गिर गया। अंगद वह मुकुट लेकर वापस श्री राम के पास चले आये। यह महिमा थी रघुकुल के राज मुकुट की।राजा दशरथ के पास गया तो उन्हें पीड़ा झेलनी पड़ी। बाली से जब रावण वह मुकुट लेकर गया तो तो बाली को अपने प्राणों को आहूत देनी पड़ी। इसके बाद जब अंगद रावण से वह मुकुट लेकर गया तो रावण के भी प्राण गए।तथा कैकयी के कारण ही रघुकुल के लाज बच सकी यदि कैकयी श्री राम को वनवास नही भेजती तो रघुकुल सम्मान वापस नही लोट पाता। कैकयी ने कुल के सम्मान के लिए सभी कलंक एवं अपयश अपने ऊपर ले लिए अतः श्री राम अपनी माताओ सबसे ज्यादा प्रेम कैकयी को करते थे।ऐसे और पोस्ट देखने के लिए और खूबसूरत सी कहानीया से जुड़ने के लिए क्लिक करें 👇👇बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम

राजा दशरथ के मुकुट का एक अनोखा राज, पहले कभी नही सुनी होगी यह कथा आपने !!!!!!!!!! अयोध्या के राजा दशरथ एक बार भ्रमण करते हुए वन की ओर निकले वहां उनका समाना बाली से हो गया। राजा दशरथ की किसी बात से नाराज हो बाली ने उन्हें युद्ध के लिए चुनोती दी। राजा दशरथ की तीनो रानियों में से कैकयी अश्त्र शस्त्र एवं रथ चालन में पारंगत थी। अतः अक्सर राजा दशरथ जब कभी कही भ्रमण के लिए जाते तो कैकयी को भी अपने साथ ले जाते थे इसलिए कई बार वह युद्ध में राजा दशरथ के साथ होती थी। जब बाली एवं राजा दशरथ के मध्य भयंकर युद्ध चल रहा था उस समय संयोग वश रानी कैकयी भी उनके साथ थी। युद्ध में बाली राजा दशरथ पर भारी पड़ने लगा वह इसलिए क्योकि बाली को यह वरदान प्राप्त था की उसकी दृष्टि यदि किसी पर भी पद जाए तो उसकी आधी शक्ति बाली को प्राप्त हो जाती थी। अतः यह तो निश्चित था की उन दोनों के युद्ध में हर राजा दशरथ की ही होगी। राजा दशरथ के युद्ध हारने पर बाली ने उनके सामने एक शर्त रखी की या तो वे अपनी पत्नी कैकयी को वहां छोड़ जाए या रघुकुल की शान अपना मुकुट यहां पर छोड़ जाए। तब राजा दशरथ को अपना मुकुट वहां छोड़ रानी कैकेयी के साथ ...

एक मित्र ने भेजा था पसंद आया तो आप सब के बीच रख रहा हुं थोड़ा समय लगेगा लेकिन पढ़ना जरूर, आंसू आ जाए तो जान लेना आपकी भावनाएं जीवित हैं ....बात बहुत पुरानी है। आठ-दस साल पहले की है । मैं अपने एक मित्र का पासपोर्ट बनवाने के लिए दिल्ली के पासपोर्ट ऑफिस गया था। उन दिनों इंटरनेट पर फार्म भरने की सुविधा नहीं थी। पासपोर्ट दफ्तर में दलालों का बोलबाला था और खुलेआम दलाल पैसे लेकर पासपोर्ट के फार्म बेचने से लेकर उसे भरवाने, जमा करवाने और पासपोर्ट बनवाने का काम करते थे। मेरे मित्र को किसी कारण से पासपोर्ट की जल्दी थी, लेकिन दलालों के दलदल में फंसना नहीं चाहते थे। हम पासपोर्ट दफ्तर पहुंच गए, लाइन में लग कर हमने पासपोर्ट का तत्काल फार्म भी ले लिया। पूरा फार्म भर लिया। इस चक्कर में कई घंटे निकल चुके थे, और अब हमें िकसी तरह पासपोर्ट की फीस जमा करानी थी। हम लाइन में खड़े हुए लेकिन जैसे ही हमारा नंबर आया बाबू ने खिड़की बंद कर दी और कहा कि समय खत्म हो चुका है अब कल आइएगा। मैंने उससे मिन्नतें की, उससे कहा कि आज पूरा दिन हमने खर्च किया है और बस अब केवल फीस जमा कराने की बात रह गई है, कृपया फीस ले लीजिए। बाबू बिगड़ गया। कहने लगा, "आपने पूरा दिन खर्च कर दिया तो उसके लिए वो जिम्मेदार है क्या? अरे सरकार ज्यादा लोगों को बहाल करे। मैं तो सुबह से अपना काम ही कर रहा हूं।" मैने बहुत अनुरोध किया पर वो नहीं माना। उसने कहा कि बस दो बजे तक का समय होता है, दो बज गए। अब कुछ नहीं हो सकता। मैं समझ रहा था कि सुबह से दलालों का काम वो कर रहा था, लेकिन जैसे ही बिना दलाल वाला काम आया उसने बहाने शुरू कर दिए हैं। पर हम भी अड़े हुए थे कि बिना अपने पद का इस्तेमाल किए और बिना उपर से पैसे खिलाए इस काम को अंजाम देना है। मैं ये भी समझ गया था कि अब कल अगर आए तो कल का भी पूरा दिन निकल ही जाएगा, क्योंकि दलाल हर खिड़की को घेर कर खड़े रहते हैं, और आम आदमी वहां तक पहुंचने में बिलबिला उठता है।खैर, मेरा मित्र बहुत मायूस हुआ और उसने कहा कि चलो अब कल आएंगे। मैंने उसे रोका। कहा कि रुको एक और कोशिश करता हूं। बाबू अपना थैला लेकर उठ चुका था। मैंने कुछ कहा नहीं, चुपचाप उसके-पीछे हो लिया। वो उसी दफ्तर में तीसरी या चौथी मंजिल पर बनी एक कैंटीन में गया, वहां उसने अपने थैले से लंच बॉक्स निकाला और धीरे-धीरे अकेला खाने लगा। मैं उसके सामने की बेंच पर जाकर बैठ गया। उसने मेरी ओर देखा और बुरा सा मुंह बनाया। मैं उसकी ओर देख कर मुस्कुराया। उससे मैंने पूछा कि रोज घर से खाना लाते हो? उसने अनमने से कहा कि हां, रोज घर से लाता हूं। मैंने कहा कि तुम्हारे पास तो बहुत काम है, रोज बहुत से नए-नए लोगों से मिलते होगे? वो पता नहीं क्या समझा और कहने लगा कि हां मैं तो एक से एक बड़े अधिकारियों से मिलता हूं।कई आईएएस, आईपीएस, विधायक और न जाने कौन-कौन रोज यहां आते हैं। मेरी कुर्सी के सामने बड़े-बड़े लोग इंतजार करते हैं। मैंने बहुत गौर से देखा, ऐसा कहते हुए उसके चेहरे पर अहं का भाव था। मैं चुपचाप उसे सुनता रहा। फिर मैंने उससे पूछा कि एक रोटी तुम्हारी प्लेट से मैं भी खा लूं? वो समझ नहीं पाया कि मैं क्या कह रहा हूं। उसने बस हां में सिर हिला दिया। मैंने एक रोटी उसकी प्लेट से उठा ली, और सब्जी के साथ खाने लगा। वो चुपचाप मुझे देखता रहा। मैंने उसके खाने की तारीफ की, और कहा कि तुम्हारी पत्नी बहुत ही स्वादिष्ट खाना पकाती है। वो चुप रहा। मैंने फिर उसे कुरेदा। तुम बहुत महत्वपूर्ण सीट पर बैठे हो। बड़े-बड़े लोग तुम्हारे पास आते हैं। तो क्या तुम अपनी कुर्सी की इज्जत करते हो?अब वो चौंका। उसने मेरी ओर देख कर पूछा कि इज्जत? मतलब?मैंने कहा कि तुम बहुत भाग्यशाली हो, तुम्हें इतनी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मिली है, तुम न जाने कितने बड़े-बड़े अफसरों से डील करते हो, लेकिन तुम अपने पद की इज्जत नहीं करते। उसने मुझसे पूछा कि ऐसा कैसे कहा आपने? मैंने कहा कि जो काम दिया गया है उसकी इज्जत करते तो तुम इस तरह रुखे व्यवहार वाले नहीं होते। देखो तुम्हारा कोई दोस्त भी नहीं है। तुम दफ्तर की कैंटीन में अकेले खाना खाते हो, अपनी कुर्सी पर भी मायूस होकर बैठे रहते हो, लोगों का होता हुआ काम पूरा करने की जगह अटकाने की कोशिश करते हो।मान लो कोई एकदम दो बजे ही तुम्हारे काउंटर पर पहुंचा तो तुमने इस बात का लिहाज तक नहीं किया कि वो सुबह से लाइऩ में खड़ा रहा होगा, और तुमने फटाक से खिड़की बंद कर दी। जब मैंने तुमसे अनुरोध किया तो तुमने कहा कि सरकार से कहो कि ज्यादा लोगों को बहाल करे। मान लो मैं सरकार से कह कर और लोग बहाल करा लूं, तो तुम्हारी अहमियत घट नहीं जाएगी? हो सकता है तुमसे ये काम ही ले लिया जाए। फिर तुम कैसे आईएएस, आईपीए और विधायकों से मिलोगे?भगवान ने तुम्हें मौका दिया है रिश्ते बनाने के लिए। लेकिन अपना दुर्भाग्य देखो, तुम इसका लाभ उठाने की जगह रिश्ते बिगाड़ रहे हो। मेरा क्या है, कल भी आ जाउंगा, परसों भी आ जाउंगा। ऐसा तो है नहीं कि आज नहीं काम हुआ तो कभी नहीं होगा। तुम नहीं करोगे कोई और बाबू कल करेगा। पर तुम्हारे पास तो मौका था किसी को अपना अहसानमंद बनाने का। तुम उससे चूक गए। वो खाना छोड़ कर मेरी बातें सुनने लगा था। मैंने कहा कि पैसे तो बहुत कमा लोगे, लेकिन रिश्ते नहीं कमाए तो सब बेकार है। क्या करोगे पैसों का? अपना व्यवहार ठीक नहीं रखोगे तो तुम्हारे घर वाले भी तुमसे दुखी रहेंगे। यार दोस्त तो नहीं हैं, ये तो मैं देख ही चुका हूं। मुझे देखो, अपने दफ्तर में कभी अकेला खाना नहीं खाता। यहां भी भूख लगी तो तुम्हारे साथ खाना खाने आ गया। अरे अकेला खाना भी कोई ज़िंदगी है?मेरी बात सुन कर वो रुंआसा हो गया। उसने कहा कि आपने बात सही कही है साहब। मैं अकेला हूं। पत्नी झगड़ा कर मायके चली गई है। बच्चे भी मुझे पसंद नहीं करते। मां है, वो भी कुछ ज्यादा बात नहीं करती। सुबह चार-पांच रोटी बना कर दे देती है, और मैं तनहा खाना खाता हूं। रात में घर जाने का भी मन नहीं करता। समझ में नहींं आता कि गड़बड़ी कहां है? मैंने हौले से कहा कि खुद को लोगों से जोड़ो। किसी की मदद कर सकते तो तो करो। देखो मैं यहां अपने दोस्त के पासपोर्ट के लिए आया हूं। मेरे पास तो पासपोर्ट है। मैंने दोस्त की खातिर तुम्हारी मिन्नतें कीं। निस्वार्थ भाव से। इसलिए मेरे पास दोस्त हैं, तुम्हारे पास नहीं हैं। वो उठा और उसने मुझसे कहा कि आप मेरी खिड़की पर पहुंचो। मैं आज ही फार्म जमा करुंगा। मैं नीचे गया, उसने फार्म जमा कर लिया, फीस ले ली। और हफ्ते भर में पासपोर्ट बन गया। बाबू ने मुझसे मेरा नंबर मांगा, मैंने अपना मोबाइल नंबर उसे दे दिया और चला आया।कल दिवाली पर मेरे पास बहुत से फोन आए। मैंने करीब-करीब सारे नंबर उठाए। सबको हैप्पी दिवाली बोला। उसी में एक नंबर से फोन आया, "रविंद्र कुमार चौधरी बोल रहा हूं साहब।"मैं एकदम नहीं पहचान सका। उसने कहा कि कई साल पहले आप हमारे पास अपने किसी दोस्त के पासपोर्ट के लिए आए थे, और आपने मेरे साथ रोटी भी खाई थी। आपने कहा था कि पैसे की जगह रिश्ते बनाओ। मुझे एकदम याद आ गया। मैंने कहा हां जी चौधरी साहब कैसे हैं?उसने खुश होकर कहा, "साहब आप उस दिन चले गए, फिर मैं बहुत सोचता रहा। मुझे लगा कि पैसे तो सचमुच बहुत लोग दे जाते हैं, लेकिन साथ खाना खाने वाला कोई नहीं मिलता। सब अपने में व्यस्त हैं। मैं साहब अगले ही दिन पत्नी के मायके गया, बहुत मिन्नतें कर उसे घर लाया। वो मान ही नहीं रही थी।वो खाना खाने बैठी तो मैंने उसकी प्लेट से एक रोटी उठा ली, कहा कि साथ खिलाओगी? वो हैरान थी। रोने लगी। मेरे साथ चली आई। बच्चे भी साथ चले आए।साहब अब मैं पैसे नहीं कमाता। रिश्ते कमाता हूं। जो आता है उसका काम कर देता हूं। साहब आज आपको हैप्पी दिवाली बोलने के लिए फोन किया है।अगल महीने बिटिया की शादी है। आपको आना है।अपना पता भेज दीजिएगा। मैं और मेरी पत्नी आपके पास आएंगे।मेरी पत्नी ने मुझसे पूछा था कि ये पासपोर्ट दफ्तर में रिश्ते कमाना कहां से सीखे? तो मैंने पूरी कहानी बताई थी। आप किसी से नहीं मिले लेकिन मेरे घर में आपने रिश्ता जोड़ लिया है। सब आपको जानते है बहुत दिनों से फोन करने की सोचता था, लेकिन हिम्मत नहीं होती थी। आज दिवाली का मौका निकाल कर कर रहा हूं। शादी में आपको आना है। बिटिया को आशीर्वाद देने। रिश्ता जोड़ा है आपने। मुझे यकीन है आप आएंगे। वो बोलता जा रहा था, मैं सुनता जा रहा था। सोचा नहीं था कि सचमुच उसकी ज़िंदगी में भी पैसों पर रिश्ता भारी पड़ेगा। लेकिन मेरा कहा सच साबित हुआ। आदमी भावनाओं से संचालित होता है। कारणों से नहीं। कारण से तो मशीनें चला करती हैंपसंद आए तो अपनें अज़ीज़ दोस्तों को जरुर भेजें एंव इनसांनीयत की भावना को आगे बढ़ाएँ पैसा इन्सान के लिए बनाया गया है, इन्सान पैैसै के लिए नहीं बनाया गया है!!""" जिंदगी में किसी का साथ ही काफी है,, कंधे पर रखा हुआ हाथ ही काफी है,,,, दूर हो या पास क्या फर्क पड़ता है,, क्योंकि अनमोल रिश्तों का तो बस एहसास ही काफी है *** । । अगर आपके दिल को छुआ हो तो इस मैसेज से कुछ सीखने की कोशिश करना ,, शायद आपकी दुनिया भी बदल जाये ।।।*अगर मरने के बाद भी जीना चाहो तो एक काम जरूर करना पढ़ने लायक कुछ लिख जाना या लिखने लायक कुछ कर जाना I*🌺🌺🕉🕉💐💐धन्यवाद💐💐 🙏 🙏ऐसे और पोस्ट देखने के लिए और खूबसूरत सी कहानीया से जुड़ने के लिए क्लिक करें 👇👇बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम

एक मित्र ने भेजा था पसंद आया तो आप सब के बीच रख रहा हुं  थोड़ा समय लगेगा लेकिन पढ़ना जरूर, आंसू आ जाए तो जान लेना आपकी भावनाएं जीवित हैं .... बात बहुत पुरानी है। आठ-दस साल पहले की है ।  मैं अपने एक मित्र का पासपोर्ट बनवाने के लिए दिल्ली के पासपोर्ट ऑफिस गया था।  उन दिनों इंटरनेट पर फार्म भरने की सुविधा नहीं थी। पासपोर्ट दफ्तर में दलालों का बोलबाला था और खुलेआम दलाल पैसे लेकर पासपोर्ट के फार्म बेचने से लेकर उसे भरवाने, जमा करवाने और पासपोर्ट बनवाने का काम करते थे।  मेरे मित्र को किसी कारण से पासपोर्ट की जल्दी थी, लेकिन दलालों के दलदल में फंसना नहीं चाहते थे।  हम पासपोर्ट दफ्तर पहुंच गए, लाइन में लग कर हमने पासपोर्ट का तत्काल फार्म भी ले लिया। पूरा फार्म भर लिया। इस चक्कर में कई घंटे निकल चुके थे, और अब हमें िकसी तरह पासपोर्ट की फीस जमा करानी थी।  हम लाइन में खड़े हुए लेकिन जैसे ही हमारा नंबर आया बाबू ने खिड़की बंद कर दी और कहा कि समय खत्म हो चुका है अब कल आइएगा।  मैंने उससे मिन्नतें की, उससे कहा कि आज पूरा दिन हमने खर्च किया है और बस अब केवल फीस जमा कर...

■■■■■■■■■■■■■■■■🏵️ *राम नाम की महिमा* 🏵️■■■■■■■■■■■■■■■■ एक नगर में राजा की रानी का नाम था *कर्णावती* था।जैसा उसका नाम था वैसा ही उसका स्वभाव था। वह अपने सेवकों दास दासियों सब के साथ बड़ा मधुर व्यवहार रखती, मीठे वचनों से और सम्मान सूचक संबोधन से उन्हें प्रसन्न करती। राजमहल में सफाई करने वाली एक हरिजन महिला प्रतिदिन सफाई करने के लिए आती थी। रानी साहिबा उस के साथ अपनी छोटी बहन की भांति व्यवहार और वार्तालाप करती। महारानी की पुत्री राजकुमारी नव योवना अत्यंत ही सुंदर थी।जिस पर एक बार सफाई करने वाली हरिजन के पति की नजर पड़ गई। वह बड़ा दुष्ट प्रवृत्ति का था। उसमें सभी प्रकार के कुलक्षण थे। उसने अपनी पत्नी (जो राज महल में जाती थी) से कहा मेरा विवाह उस राजकुमारी से करवा दो, अन्यथा मैं अन्नजल छोड़ कर के उसके प्यार में मर जाऊंगा। हरिजन पत्नी ने उसको बहुत डांट लगाई और समझाया राज परिवार को यदि तुम्हारी इस बात का पता चल गया तो वे तुम्हें फांसी पर चढ़ा देंगे। मृत्यु दंड देंगे। और मेरे इन बच्चों का क्या होगा ?उस दुष्ट ने कहा राजा मारे या ना मारे लेकिन मैं उसके प्यार में मर ही जाऊंगा।वह बेचारी क्या कर सकती थी। दूसरे दिन रानी कर्णावती की नजर उसके उदासीन चेहरे पर पड़ी। उसने दासी के साथ उस सफाई कर्मी को अपने महल में बुलवाया और कहा बहन उदास क्यों है? क्या संकट है तेरे पर? उसने बिचारी ने रोते हुए रानीजी से कहा ~"रानी साहिबा जी मैं आपको नहीं बता सकती इतना घोर संकट है कि मैं आपके साथ जबान से बयां भी नहीं कर सकती।" ऐसा कहते हुए वह खूब रोने लगी। रानी में उसको अभय दान देकर धैर्य बंधाते हुए कहा जो कुछ भी है तुम मुझे बता दो। वह रोती हुईं अपने दुष्ट पति की सारी करतूत बता दी ।रानी ने हंसकर कहा तू सारा फिक्र छोड़ दे। तेरे पति को मेरे पास भेज दे। मैं अपनी राजकुमारी का विवाह उस हरिजन से कर दूंगी। उसे ऐसी अनहोनी बात पर विश्वास तो नहीं हो रहा था, फिर भी उसमें अपने पति को रानी साहिबा की बात कह दी। (उसके पति का नाम कालू हरिजन था) वह बहुत ही आनंदित होकर के महल में गया। रानी साहब ने उससे कहा~ *मैं अपनी पुत्री का विवाह तुम्हारे साथ कर दूंगी लेकिन इससे पहले तुम्हें हमारी एक शर्त मंजूर करनी पड़ेगी*। वह बोला इस काम के लिए मैं अपनी जान तक कुर्बान कर सकता हूं। *रानी ने कहा~ हमारे बाग में तुम्हारे लिए एक झोपड़ी बना दी जाएगी। तुम अपने घर नहीं जाओगे। जैसा भी राजमहल से रुखा सुखा भोजन मिले वही भोजन तुम्हें करना होगा। दिन और रात राम राम राम राम राम के नाम का जप करना पड़ेगा 6 महीने तक* उसने कहा महारानी जी मैं जीवन भर तक कर सकता हूं। *रानी जी ने कहा नहीं नहीं तुम छ महिने तक ऐसा करोगे तो पवित्र हो जाओगे क्योंकि राम के नाम में पवित्र करने की अपार शक्ति है।* तब हम अपनी राजकन्या का विवाह तुम्हारे साथ कर देंगे। यह काम तुम कल से ही शुरू कर दो । रानी साहिबा की तरफ से सारी व्यवस्था कर दी गई। कालू भी अपनी शर्त के मुताबिक बड़ी लगन से *राम राम राम राम राम नाम का जप करने लगा। उसको भोजन भी बहुत ही कम मात्रा में दिया जाता था। राम नाम के प्रभाव से उसका मन पवित्र होता गया। राम नाम के प्रभाव से उसके आसपास का वातावरण भी प्रभावित हो गया। लोग उसके दर्शन करने के लिए आने लगे। दर्शनार्थियों की भीड़ जुटने लगी।कुछ ही महीनों में उसका मन एकदम पवित्र हो गया। उसके अंदर का भंगीपना मर गया।* एक दिन रानी साहिबा अपनी राजकन्या को लेकर के उसके पास आई और बोली "कालू जी मैं अपने वचनों पर राजकुमारी का विवाह आपके साथ करने के लिए तैयार हूं'। कालू ने हाथ जोड़कर रानी साहिबा को साष्टांग प्रणाम करते हुए कहा~ रानी साहिबा जी मुझे क्षमा कर दो, मैं बहुत नीच हूं जो इस प्रकार के दूषित विचार रखता हूं। माता जी आप मुझे क्षमा कर दें।यह राजकुमारी बाईसा जी भी मुझे अपनी मां के समान लगती है। *प्रिय सज्जनों यह मात्र कहानी नहीं है। मन में कभी भी दूषित विचार आते हों, मन मलीन होता हो, मन में किसी प्रकार का विक्षेप आता हो ,आप इस प्रयोग को करके देख लीजिए। आपका मन पवित्र हो जाएगा। घर में किसी सदस्य से किसी बात पर झगड़ा फसाद हो जाता हो। तो "श्री राम जय राम जय जय राम" का कीर्तन करके देख लीजिए। सब विवाद समाप्त हो जाएंगे।* *राम नाम करअमित प्रभावा।**संत पुराण उपनिषद गाबा*।। *राम सकल नामन ते अधिका*। *होउ नाथ अघ खग गन बधिका*।।*राम नाम मनी बसि उर जा के*। *दुख लवलेश न होउ ताके।* *राम राम कही जे जमुहाई।* *तिन्ह ही न पाप पुण्ज समूहाई*।*राम नाम बिनु गिरा न सोहा* *देखी विचार त्याग मद मोहा**राम नाम की औषधि खरी नियत से खाय*। *अंग रोग व्यापै नहीं महा रोग मिट जाय*।। *जय श्रीराम* धन्यवाद .!!ऐसे और पोस्ट देखने के लिए और खूबसूरत सी कहानीया से जुड़ने के लिए क्लिक करें 👇👇वनिता कासनियां पंजाब

■■■■■■■■■■■■■■■■ 🏵️ *राम नाम की महिमा* 🏵️ ■■■■■■■■■■■■■■■■             एक नगर में राजा की रानी का नाम था *कर्णावती* था।जैसा उसका नाम था वैसा ही उसका स्वभाव था। वह अपने सेवकों दास दासियों सब के साथ बड़ा मधुर व्यवहार रखती, मीठे वचनों से और सम्मान सूचक संबोधन से उन्हें प्रसन्न करती।              राजमहल में सफाई करने वाली एक हरिजन महिला प्रतिदिन सफाई करने के लिए आती थी। रानी साहिबा उस के साथ अपनी छोटी बहन की भांति व्यवहार और वार्तालाप करती। महारानी की पुत्री राजकुमारी नव योवना अत्यंत ही सुंदर थी।जिस पर एक बार सफाई करने वाली हरिजन के पति की नजर पड़ गई। वह बड़ा दुष्ट प्रवृत्ति का था। उसमें सभी प्रकार के कुलक्षण थे। उसने अपनी पत्नी (जो राज महल में जाती थी) से कहा मेरा विवाह उस राजकुमारी से करवा दो, अन्यथा मैं अन्नजल छोड़ कर के उसके प्यार में मर जाऊंगा। हरिजन पत्नी ने उसको बहुत डांट लगाई और समझाया राज परिवार को यदि तुम्हारी इस बात का पता चल गया तो वे तुम्हें फांसी पर चढ़ा देंगे। मृत्यु दंड देंगे। और मेरे इन बच्चों का क्या हो...

💓💓 Զเधे Զเधे जी 💓💓🌹🌹कान्हा ने जब-जब भी, सुर साधाबाँसुरी से निकला बस राधा-राधा।🌹🌹🌹🌹कोई श्रृंगार नहीं , मणियों के हार नहींरेशम के चीर नहीं, नयनों के तीर नहींबुज की भोली बाला, का, रूप था सादा।🌹🌹🌹🌹नयनों में मान भरा, मन में विश्वास भराकेवल समर्पण था, कोई अधिकार नहींप्रियतम ने समझी जिसके मन की भाषा।🌹🌹🌹🌹राधा बिना कृष्ण नहीं, कृष्ण बिना राधा नहींयुग-युग से साथ हैं वह जन-जन की आस हैं वहकभी जिनका मिलन रहा, आधा-आधा।🌹🌹🌹🌹छू न सकी जिसको कभी स्वार्थ की मायाकृष्ण से भी पहले नाम राधा का आयाराधे-कृष्ण जपता रहा, जग ये सारा।🌹🌹 👣♥️🙏राधे राधे🙏राधे राधे.:-🙏♥️👣‼️@सभी भक्तों को जय श्री राधे राधे जी ‼️🌹🙏🌹🙏🌹🙏🌹🙏🌹🙏🌹🙏🌹ऐसे और पोस्ट देखने के लिए और खूबसूरत सी कहानीयासे जुड़ने के लिए क्लिक करें 👇👇 बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम

💓💓 Զเधे Զเधे जी 💓💓 🌹🌹कान्हा ने जब-जब भी, सुर साधा बाँसुरी से निकला बस राधा-राधा।🌹🌹 🌹🌹कोई श्रृंगार नहीं , मणियों के हार नहीं रेशम के चीर नहीं, नयनों के तीर नहीं बुज की भोली बाला, का, रूप था सादा।🌹🌹 🌹🌹नयनों में मान भरा, मन में विश्वास भरा केवल समर्पण था, कोई अधिकार नहीं प्रियतम ने समझी जिसके मन की भाषा।🌹🌹 🌹🌹राधा बिना कृष्ण नहीं, कृष्ण बिना राधा नहीं युग-युग से साथ हैं वह जन-जन की आस हैं वह कभी जिनका मिलन रहा, आधा-आधा।🌹🌹 🌹🌹छू न सकी जिसको कभी स्वार्थ की माया कृष्ण से भी पहले नाम राधा का आया राधे-कृष्ण जपता रहा, जग ये सारा।🌹🌹  👣♥️🙏राधे राधे🙏राधे राधे.:-🙏♥️👣 ‼️@सभी भक्तों को जय श्री राधे राधे जी ‼️ 🌹🙏🌹🙏🌹🙏🌹🙏🌹🙏🌹🙏🌹 ऐसे और पोस्ट देखने के लिए और  खूबसूरत सी कहानीया से जुड़ने के लिए क्लिक करें 👇👇  बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम 

*👉 एक दोस्त हलवाई की दुकान पर मिल गया ।*⭕मुझसे कहा- ‘आज माँ का श्राद्ध है, माँ को लड्डू बहुत पसन्द है, इसलिए लड्डू लेने आया हूँ '⭕मैं आश्चर्य में पड़ गया ।अभी पाँच मिनिट पहले तो मैं उसकी माँ से सब्जी मंडी में मिला था ।⭕मैं कुछ और कहता उससे पहले ही खुद उसकी माँ हाथ में झोला लिए वहाँ आ पहुँची ।⭕मैंने दोस्त की पीठ पर मारते हुए कहा- 'भले आदमी ये क्या मजाक है ?माँजी तो यह रही तेरे पास !⭕दोस्त अपनी माँ के दोनों कंधों पर हाथ रखकर हँसकर बोला, ‍'भई, बात यूँ है कि मृत्यु के बाद गाय-कौवे की थाली में लड्डू रखने से अच्छा है कि माँ की थाली में लड्डू परोसकर उसे जीते-जी तृप्त करूँ ।⭕मैं मानता हूँ कि जीते जी माता-पिता को हर हाल में खुश रखना ही सच्चा श्राद्ध है ।♻आगे उसने कहा, 'माँ को मिठाई,सफेद जामुन, आम आदि पसंद है ।मैं वह सब उन्हें खिलाता हूँ ।♻श्रद्धालु मंदिर में जाकर अगरबत्ती जलाते हैं । मैं मंदिर नहीं जाता हूँ, पर माँ के सोने के कमरे में कछुआ छाप अगरबत्ती लगा देता हूँ ।⭕सुबह जब माँ गीता पढ़ने बैठती है तो माँ का चश्मा साफ कर के देता हूँ । मुझे लगता है कि ईश्वर के फोटो व मूर्ति आदि साफ करने से ज्यादा पुण्यमाँ का चश्मा साफ करके मिलता है ।♻यह बात श्रद्धालुओं को चुभ सकती है पर बात खरी है ।⭕हम बुजुर्गों के मरने के बाद उनका श्राद्ध करते हैं ।पंडितों को खीर-पुरी खिलाते हैं ।♻रस्मों के चलते हम यह सब कर लेते है, पर याद रखिए कि गाय-कौए को खिलाया ऊपर पहुँचता है या नहीं, यह किसे पता ।⭕अमेरिका या जापान में भी अभी तक स्वर्ग के लिए कोई टिफिन सेवा शुरू नही हुई है ।*🙏🏻🌺माता-पिता को जीते-जी ही सारे सुख देना वास्तविक श्राद्ध है ॥**🌺🙏🏻मन को छुये तो आगे भेज देना , वर्ना कचरे में पटक देना !**आपकी मर्जी ......😊🌺*ऐसे और पोस्ट देखने के लिए और खूबसूरत सी कहानीया से जुड़ने के लिए क्लिक करें 👇👇वनिता कासनियां पंजाब::-

*👉 एक दोस्त हलवाई की दुकान पर मिल गया ।* ⭕मुझसे कहा- ‘आज माँ का श्राद्ध है, माँ को लड्डू बहुत पसन्द है, इसलिए लड्डू लेने आया हूँ ' ⭕मैं आश्चर्य में पड़ गया । अभी पाँच मिनिट पहले तो मैं उसकी माँ से सब्जी मंडी में मिला था । ⭕मैं कुछ और कहता उससे पहले ही खुद उसकी माँ हाथ में झोला लिए वहाँ आ पहुँची । ⭕मैंने दोस्त की पीठ पर मारते हुए कहा- 'भले आदमी ये क्या मजाक है ? माँजी तो यह रही तेरे पास ! ⭕दोस्त अपनी माँ के दोनों कंधों पर हाथ रखकर हँसकर बोला, ‍'भई, बात यूँ है कि मृत्यु के बाद गाय-कौवे की थाली में लड्डू रखने से अच्छा है कि माँ की थाली में लड्डू परोसकर उसे जीते-जी तृप्त करूँ । ⭕मैं मानता हूँ कि जीते जी माता-पिता को हर हाल में खुश रखना ही सच्चा श्राद्ध है । ♻आगे उसने कहा, 'माँ को मिठाई, सफेद जामुन, आम आदि पसंद है । मैं वह सब उन्हें खिलाता हूँ । ♻श्रद्धालु मंदिर में जाकर अगरबत्ती जलाते हैं । मैं मंदिर नहीं जाता हूँ, पर माँ के सोने के कमरे में कछुआ छाप अगरबत्ती लगा देता हूँ । ⭕सुबह जब माँ गीता पढ़ने बैठती है तो माँ का चश्मा साफ कर के देता हूँ । मुझे लगता है कि ईश्वर के फोटो ...

तुम और मैं पति पत्नी थे, तुम माँ बन गईं मैं पिता रह गया।तुमने घर सम्भाला, मैंने कमाई, लेकिन तुम "माँ के हाथ का खाना" बन गई, मैं कमाने वाला पिता रह गया।बच्चों को चोट लगी और तुमने गले लगाया, मैंने समझाया, तुम ममतामयी बन गई मैं पिता रह गया।बच्चों ने गलतियां कीं, तुम पक्ष ले कर "understanding Mom" बन गईं और मैं "पापा नहीं समझते"वाला पिता रह गया।"पापा नाराज होंगे" कह कर तुम बच्चों की बेस्ट फ्रेंड बन गईं, और मैं गुस्सा करने वाला पिता रह गया।तुम्हारे आंसू में मां का प्यार और मेरे छुपे हुए आंसुओं मे, मैं निष्ठुर पिता रह गया।तुम चंद्रमा की तरह शीतल बनतीं गईं, और पता नहीं कब मैं सूर्य की अग्नि सा पिता रह गया।तुम धरती माँ, भारत मां और मदर नेचर बनतीं गईं,और मैं जीवन को प्रारंभ करने का दायित्व लिएसिर्फ एक पिता रह गया...फिर भी न जाने क्यूं पिता पीछे रह जाता हैमाँ, नौ महीने पालती है पिता, 25 साल् पालता है फिर भी न जाने क्यूं पिता पीछे रह जाता हैमाँ, बिना तानख्वाह घर का सारा काम करती है पिता, पूरी कमाई घर पे लुटा देता है फिर भी न जाने क्यूं पिता पीछे रह जाता हैमाँ ! जो चाहते हो वो बनाती है पिता ! जो चाहते हो वो ला के देता है फिर भी न जाने क्यूं पिता पीछे रह जाता हैमाँ ! को याद करते हो जब चोट लगती है पिता ! को याद करते हो जब ज़रुरत पड़ती है फिर भी न जाने क्यूं पिता पीछे रह जाता हैमाँ की ओर बच्चो की अलमारी नये कपड़े से भरी है पिता, कई सालो तक पुराने कपड़े चलाता है फिर भी न जाने क्यूं पिता पीछे रह जाता है*पिता, अपनी ज़रुरते टाल कर सबकी ज़रुरते समय से पूरी करता हैकिसी को उनकी ज़रुरते टालने को नहीं कहता फिर भी न जाने क्यूं पिता पीछे रह जाता हैजीवनभर दूसरों से आगे रहने की कोशिश करता है मगर हमेशा परिवार के पीछे रहता है, शायद इसीलिए क्योकि वो पिता हैं ।पिता के प्रेम का पता तब चलता है जब वो नही होते ☺️ऐसे और पोस्ट देखने के लिए और खूबसूरत सी कहानीया से जुड़ने के लिए क्लिक करें 👇👇वनिता कासनियां पंजाब ::

तुम और मैं पति पत्नी थे, तुम माँ बन गईं मैं पिता रह गया। तुमने घर सम्भाला, मैंने कमाई, लेकिन तुम "माँ के हाथ का खाना" बन गई, मैं कमाने वाला पिता रह गया। बच्चों को चोट लगी और तुमने गले लगाया, मैंने समझाया, तुम ममतामयी बन गई मैं पिता रह गया। बच्चों ने गलतियां कीं, तुम पक्ष ले कर "understanding Mom" बन गईं और मैं "पापा नहीं समझते"वाला पिता रह गया। "पापा नाराज होंगे" कह कर तुम बच्चों की बेस्ट फ्रेंड बन गईं, और मैं गुस्सा करने वाला पिता रह गया। तुम्हारे आंसू में मां का प्यार और मेरे छुपे हुए आंसुओं मे, मैं निष्ठुर पिता रह गया। तुम चंद्रमा की तरह शीतल बनतीं गईं, और पता नहीं कब मैं सूर्य की अग्नि सा पिता रह गया। तुम धरती माँ, भारत मां और मदर नेचर बनतीं गईं, और मैं जीवन को प्रारंभ करने का दायित्व लिए सिर्फ एक पिता रह गया... फिर भी न जाने क्यूं पिता पीछे रह जाता है माँ, नौ महीने पालती है  पिता, 25 साल् पालता है  फिर भी न जाने क्यूं पिता पीछे रह जाता है माँ, बिना तानख्वाह घर का सारा काम करती है  पिता, पूरी कमाई घर पे लुटा देता है  फिर भी न जाने क्यूं पित...

*॥अपना कर्ज॥* कुंतालपुर का राजा बड़ा ही न्याय प्रिय था। वह अपनी प्रजा के दुख-दर्द में बराबर काम आता था। प्रजा भी उसका बहुत आदर करती थी।एक दिन राजा गुप्त वेष में अपने राज्य में घूमने निकला, तब रास्ते में देखता है कि एक वृद्ध एक छोटा सा पौधा रोप रहा है।राजा कौतूहल वश उसके पास गया और बोला,यह आप किस चीज का पौधा लगा रहे हैं ?वृद्ध ने धीमें स्वर में कहा, ‘‘आम का !’’राजा ने हिसाब लगाया कि उसके बड़े होने और उस पर फल आने में कितना समय लगेगा।हिसाब लगाकर उसने अचरज से वृद्ध की ओर देखा और कहा, सुनो दादा इस पौधै के बड़े होने और उस पर फल आने मे कई साल लग जाएंगे,तब तक तुम क्या जीवित रहोगे ?वृद्ध ने राजा की ओर देखा। वृद्ध ने कहा, “आप सोच रहें होंगे कि मैं पागलपन का काम कर रहा हूँ। जिस चीज से आदमी को फायदा नहीं पहुँचता, उस पर मेहनत करना बेकार है, लेकिन यह भी तो सोचिए कि इस बूढ़े ने दूसरों की मेहनत का कितना फायदा उठाया है ? दूसरों के लगाए पेड़ों के कितने फल अपनी जिंदगी में खाए हैं ? क्या उस कर्ज को उतारने के लिए मुझे कुछ नहीं करना चाहिए? क्या मुझे इस भावना से पेड़ नहीं लगाने चाहिए कि उनके फल दूसरे लोग खा सकें ? जो केवल अपने लाभ के लिए ही काम करता है, वह तो स्वार्थी वृत्ति का मनुष्य होता है।वृद्ध की यह दलील सुनकर राजा प्रसन्न हो गया , आज उसे भी कुछ बड़ा सीखने को मिला था..!! *🙏🏻🙏🏼🙏🏾जय जय श्री राधे*🙏🏿🙏🏽🙏ऐसे और पोस्ट देखने के लिए औरखूबसूरत सी कहानीया से जुड़ने के लिए क्लिक करें 👇👇बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम

1️⃣6️⃣❗0️⃣9️⃣❗2️⃣0️⃣2️⃣2️⃣               *॥अपना कर्ज॥*      कुंतालपुर का राजा बड़ा ही न्याय प्रिय था। वह अपनी प्रजा के दुख-दर्द में बराबर काम आता था।  प्रजा भी उसका बहुत आदर करती थी। एक दिन राजा गुप्त वेष में अपने राज्य में घूमने निकला, तब रास्ते में देखता है कि एक वृद्ध एक छोटा सा पौधा  रोप रहा है। राजा कौतूहल वश उसके पास गया और बोला, यह आप किस चीज का पौधा लगा रहे हैं ? वृद्ध ने धीमें स्वर में कहा, ‘‘आम का !’’ राजा ने हिसाब लगाया कि उसके बड़े होने और उस पर फल आने में कितना समय लगेगा। हिसाब लगाकर उसने अचरज से वृद्ध की ओर देखा और कहा,  सुनो दादा इस पौधै के बड़े होने और उस पर फल आने मे कई साल लग जाएंगे, तब तक तुम क्या जीवित रहोगे ? वृद्ध ने राजा की ओर देखा।  वृद्ध ने कहा, “आप सोच रहें होंगे कि मैं पागलपन का काम कर रहा हूँ। जिस चीज से आदमी को फायदा नहीं पहुँचता, उस पर मेहनत करना बेकार है, लेकिन यह भी तो सोचिए कि इस बूढ़े ने दूसरों की मेहनत का कितना फायदा उठाया है ?  दूसरों के लगाए पेड़ों के कितने फल अपनी जिंदगी में ...